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________________ उपाध्याय विनयविजय : व्यक्तित्व एवं कृतित्व .. . विषयविकारमपाकुरु दूरं, क्रोधं मानं सहमायम् । लोभरिपुं च विजित्य सहेलं, भज संयमगुणमकषायम् ।।" तू विषय विकारों को दूर कर, क्रोध, मान, माया और लोभरुपी शत्रुओं को सहजभाव से जीतकर कषायमुक्त संयमगुण का आसेवन कर। इस प्रकार शान्तसुधारस में १६ भावनाओं के माध्यम से आध्यात्मिकता को प्रवाहित करते .. हुए शान्तरस का अनुभव कराया गया है। (2) अध्यात्म गीता- यह गुजराती कृति है। जो दोहे और ढाल के क्रमिक प्रयोगों में निबद्ध है। इसमें कुल २३८ पद्य हैं। प्रशस्ति श्लोकों को मिलाकर इसमें २४२ पद्य हैं। इस कृति की प्रथम ढाल में प्रमुखतः निम्नलिखित विषय प्रतिपादित हैं१. धर्म का सच्चा स्वरूप क्या है? २. मैं कहाँ से आया हूँ, कहा जाऊँगा और मेरा स्वरूप क्या है? ३. मैं किसका बान्धव हूँ और कौन मेरा बान्धव है? ४. परमात्मा का शुद्ध स्वरूप क्या है? द्वितीय ढाल में धर्म रहित संसारी जीव की दुर्दशा का वर्णन किया गया है। तीसरी ढाल में बताया गया है कि ज्ञान के अभाव में संसारी जीव नरकादि गतियों में परिभ्रमण करता रहता है तथा अनेक दुःखों को भोगता है। चौथी ढाल में ८४ लाख जीव योनि का विवेचन है। आगे की ५वीं से हवीं ढाल में मिथ्यात्व एवं सम्यक्त्व का बोध कराते हुए ध्यान और योग का निरूपण किया गया है। यह कृति विनयविजय जी की है, इसकी सिद्धि निम्नांकित पंक्ति से होती है ___ विनय विवेक विचारी ने ज्योत सुं ज्योत मिलाप चेतन।" । (3) विनयविलास- यह मुख्यतः हिन्दी भाषा में रचित आध्यात्मिक कृति है जहाँ कहीं कहीं गुजराती का भी प्रयोग है। इसमें ३७ पद एवं इनमें १७० कड़ियाँ (पद्य) हैं। इसमें अधिकतर पद पाँच-पाँच कड़ियों के हैं। विनयविजयगणी ने कई पद्य आत्मलक्ष्यी दृष्टि से लिखे हैं। इस रचना में अनेक प्रेरणापद कथा प्रसंगों का समावेश किया गया है। उदाहरण के लिए राजुल एवं नेमीनाथ का प्रसंग विस्तार से कई पदों में दिया गया है। यह कृति मोह निद्रा को त्याग कर अप्रमत्त होने की शिक्षा देती है। धन, यौवन एवं सांसारिक प्रेम की चंचलता का प्रतिपादन करते हुए मन को वश में करने की प्रेरणा की गई है। योगी का जीवन कैसा होना चाहिए इसका रूपक शैली में निरूपण किया गया है। कहीं शान्तिनाथ एवं पार्श्वनाथ एवं ऋषभदेव के प्रति भक्ति दर्शायी गई है। आत्मा के विशुद्ध स्वरूप का प्रतिपादन करने वाली इस कृति में सांसारिक सुखों की आशा को त्यागने का संदेश मुखर हुआ
SR No.022332
Book TitleLokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Jain
PublisherL D Institute of Indology
Publication Year2014
Total Pages422
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
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