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________________ 19 उपाध्याय विनयविजय : व्यक्तित्व एवं कृतित्व 2. इतिहास विषयक साहित्य उपाध्याय विनयविजय ने इतिहास विषयक कृतियों का भी निर्माण किया है। इनमें पट्टावली सज्झाय एवं सूरति चैत्य परिपाटी को उल्लेखित किया जा सकता है। (1) पट्टावली सज्झाय- इस कृति में तीर्थंकर महावीर के पश्चात् सुधर्मा स्वामी से लेकर विजयप्रभसूरि तक की पट्ट परम्परा का वर्णन किया गया है। कृति का प्रारम्भ पाँच दोहों से किया गया है। इन दोहों के अनन्तर ढाल, दोहा, फिर ढाल एवं दोहा का क्रम चला है। ७२ पद्यों में निर्मित इस कृति में विनयविजय जी ने अपनी आचार्य परम्परा एवं गुरुजनों का विशेष वर्णन किया है। इसमें आचार्य हीरविजयसूरि द्वारा की गई धार्मिक प्रवृत्तियों का विस्तार से उल्लेख है। आचार्य विजयदेवसूरि को इन्होंने युगप्रधान एवं गौतमावतार विशेषणों से विशेषित किया है। अपने गुरु कीर्तिविजयगणी का इसमें विशेष परिचय दिया गया है। इस कृति का रचना काल विक्रम संवत् १७१८ होने की सम्भावना की गई है। इस कृति में आणसूरगच्छ के आचार्य विजयानन्दसूरि के सम्बन्ध में कोई उल्लेख नहीं किया गया है। (2) सूरति चैत्य परिपाटी-विनयविजयगणी की उपलब्ध समस्त कृतियों में यह सबसे अधिक प्राचीन कृति है। विक्रम संवत् १६७६ में रचित इस गुजराती रचना की १४ कड़ियों में सूरत शहर के तत्कालीन ११ जिनालयों एवं उनमें सम्पादित भाव पूजन का उल्लेख किया गया है। वे ११ जिनालय हैं- आदिनाथ, शांतिनाथ, धर्मनाथ, सूरति मण्डण, पार्श्वनाथ, सम्भवनाथ, अभिनन्दननाथ, कुम्बर पार्श्वनाथ, कुन्थुनाथ, अजितनाथ और चिन्तामणि पार्श्वनाथ। इन तीर्थंकरों का परिचय भी संक्षेप में कृतिकार ने दिया है। इसी तरह रांदेर के तीन जिनमन्दिरों, बलसाढ, धणदीवी, नवसार, हांसोठ आदि स्थानों के जिनालयों का भी उल्लेख किया गया है, किन्तु सूरत के जिनालयों की प्रधानता के कारण इस कृति का नाम 'सूरति चैत्य परिपाटी' रखा गया है। इसमें जिनालयों का ऐतिहासिक वर्णन होने से यह इतिहास सम्बद्ध है। 3. आध्यात्मिक साहित्य आध्यात्मिक साहित्य की रचनाकार की दृष्टि से भी उपाध्याय विनयविजय जी का नाम स्मरणीय है। उन्होंने आत्मगुणों की अभिवृद्धि एवं दोषों के परिहार के लिए वैराग्य का पोषण किया है। आत्म विशुद्धि हेतु उनकी आध्यात्मिक कृतियों का स्वाध्याय आज भी किया जाता है। उनकी प्रमुख आध्यात्मिक कृतियाँ हैं-शान्तसुधारस, अध्यात्मगीता, विनयविलास। (1) शान्तसुधारस- उपाध्याय विनयविजय जी की यह संस्कृत भाषा में रचित ऐसी कृति है जो आध्यात्मिक दृष्टि से अनेक जैन परम्पराओं में आदृत है। तेरापन्थ परम्परा में पूज्य कालूगणी,
SR No.022332
Book TitleLokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Jain
PublisherL D Institute of Indology
Publication Year2014
Total Pages422
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
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