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लोकप्रकाश का समीक्षात्मक अध्ययन इसीलिए उन्होनें सज्झाय के रूप में आगमों के कतिपय विषयों का प्रतिपादन किया तथा कल्पसूत्र सदृश लोकप्रिय आगम पर संस्कृत में टीका लिखने का सफल प्रयत्न किया। प्रमुख रूप से उनके द्वारा रचित सज्झाय साहित्य में अग्रांकित कृतियों की गणना होती है -... १. भगवती सूत्र नी सज्झाय . २. इरियावहिय सज्झाय ३. आयम्बिल सज्झाय
४. मरुदेवी माता सज्झाय आगम से सम्बद्ध इन सज्झायों के अतिरिक्त १. प्रत्याख्यान विचार एवं २. षडावश्यक स्तवन नामक कृतियों को भी आगम व्याख्या साहित्य के अन्तर्गत वर्गीकृत किया जा सकता है।
यहाँ पर क्रमशः कल्पसूत्र सुबोधिका टीका, सज्झाय साहित्य, प्रत्याख्यान विचार एवं षडावश्यक स्तवन का संक्षेप में परिचय दिया जा रहा है। - (1) कल्पसूत्र सुबोधिका टीका- उपाध्याय विनयविजय की संस्कृत कृतियों में इसकी रचना सबसे पहले हुई। दशाश्रुतस्कन्ध नामक छेद सूत्र के अष्टम अध्ययन ‘पज्जोसवणा कल्प' को कल्पसूत्र के नाम से जाना जाता है।उपाध्याय विनयविजय ने इसी कल्पसूत्र पर संस्कृत विवृति "सुबोधिका" की रचना की। उनकी यह विवृति अथवा टीका विक्रम संवत् १६६६ की ज्येष्ठ शुक्ला द्वितीय गुरुवार को पुष्य नक्षत्र में पूर्ण हुई। इस विवृति का परिमाण ४१५० श्लोक जितना आंका गया है। इस कल्पसूत्र में तीन विषयों का प्रतिपादन हुआ है।
१. महावीर स्वामी एवं अन्य तीर्थंकरों का जीवन संक्षेप २. स्थविरावली
३. समाचारी इसमें २४वें तीर्थंकर महावीर स्वामी का जीवन वृतान्त विस्तार से दिया गया है। फिर पश्चानुपूर्वी क्रम से पार्श्वनाथ, नेमिनाथ आदि तीर्थकर का परिचय देते हुए प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव का जीवन चरित्त दिया गया है। सुबोधिका टीका में कल्पसूत्र का आशय भलीभातिं स्पष्ट किया गया है। विविध विषयों का पल्लवन कर उनकी चर्चा की गई है। उनके द्वारा वर्णित प्रमुख विषय हैं -
आचेलक्य आदि दस कल्प, पर्युषण कल्प का महत्व, पर्युषण के पांच कृत्य, कल्याणकों की संख्या, नागकेतु की कथा, ३२ लक्षण, १४ स्वप्न विचार, कार्तिक श्रेष्ठी एवं मेघकुमार की कथा, दस आश्चर्य, महावीर स्वामी के २७ भव, स्वप्न के प्रकार एवं फल, त्रिशला का विलाप, जन्मोत्सव, ऐन्द्र व्याकरण की उत्पत्ति, महावीर स्वामी को हुए उपसर्ग, गणधरवाद, ८८ ग्रह, गौतम स्वामी का विलाप, कमठ का उत्सर्ग, नेमिनाथ की जल क्रीड़ा, एवं विवाह यात्रा, राजीमति द्वारा प्रव्रज्या, इक्ष्वाकु वंश की स्थापना, ऋषभदेव के १०० पुत्र एवं २ पुत्रियों का नामोल्लेख, हाकार आदि तीन नीतियाँ, ५ शिल्प,