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________________ 361 भावलोक क्षायिको ह्यौपशमिकात्तदुक्तस्तदनंतरं।।' भेद, स्थिति एवं स्वामित्व की अपेक्षा भी औपशमिक एवं क्षायिकभाव में भिन्नता है। औपशमिक भाव से क्षायिक भाव के अधिक भेद हैं। औपशमिक भाव जहाँ दो प्रकार का है वहाँ क्षायिक भाव नौ प्रकार का है। औपशमिक भाव की स्थिति जहाँ अन्तर्मुहूर्त है वहाँ क्षायिक भाव की स्थिति अनन्त है। औपशमिकभाव वाले जीवों की अपेक्षा क्षायिकभाव वाले जीव अनन्त है। इन पाँच भावों में औपशमिक भाव के पश्चात् क्षायिक भाव का कथन करने का हेतु भी लोकप्रकाशकार विनयविजय यही मानते हैं कि औपशमिक भाव की अपेक्षा क्षायिक भाव के भेद, स्थिति (काल) एवं स्वामी अधिक हैं। - क्षायोपशमिक भाव उदयगत कर्मों को भोगकर क्षय करने से और अनुदीर्ण अर्थात् सत्तागत कर्मोदय को रोक देने से उत्पन्न आत्मपर्याय परिणाम को क्षायोपशमिक भाव कहते हैं। इस भाव में क्षय और उपशम की मिश्रता होने से इसे मिश्रभाव भी कहते हैं अभावः समुदीर्णस्य क्षयोऽथोपशमः पुनः । विष्कभितोदयत्वं यदनुदीर्णस्य कर्मणः ।। आभ्यामुभाभ्यां निर्वृतः क्षायोपशमिकाभिधः । भावस्तृतीयो निर्दिष्ट: ख्यातोऽसौ मिश्र इत्यपि।।" अर्थात् उदीर्ण कर्मों के अभाव से क्षय तथा अनुदीर्ण कर्म के उदय को रोकने से उपशम इन दोनों (क्षय एवं उपशम) से उत्पन्न आत्मिक भाव क्षायोपशमिक कहलाता है। धतूरे को धोने पर जिस प्रकार उसकी मादक शक्ति कुछ क्षीण होती है और कुछ सत्ता में रहती है ठीक उसी प्रकार यह क्षायोपशमिक भाव एक मिश्रित आत्मिक शुद्धि है जो कर्म के एक अंश का उदय रुक जाने पर और दूसरे अंश का प्रदेशोदय द्वारा क्षय होते रहने पर प्रकट होती है। क्षायोपशमिक में प्रयुक्त उपशम शब्द का अर्थ औपशमिक में प्रयुक्त उपशम शब्द के अर्थ से भिन्न है। औपशमिक के उपशम में प्रदेश और विपाक दोनों प्रकार के उदय का अभाव होता है जबकि क्षायोपशमिक भाव में प्रदेश रूपी कर्मोदय होता है, विपाक कर्मोदय नहीं। अर्थात् इस भाव में कुछ कर्म सुख-दुःख की अनुभूति कराए बिना भोग कर निर्जरित होते हैं।" । प्रवचनसारोद्धार के टीकाकार उपशम के दो अर्थ स्वीकार करते हैं- १. कर्म के उदय को रोकना और २. कर्मगत मिथ्यास्वभाव को दूर करना। क्षायोपशमिक भाव में ये दोनों बातें घटित होती हैं। दर्शन मोहनीय कर्म के तीन पुंज
SR No.022332
Book TitleLokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Jain
PublisherL D Institute of Indology
Publication Year2014
Total Pages422
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
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