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________________ काललोक 349 गया है। वैशेषिक दर्शन में जहाँ काल को परोक्ष स्वीकार किया गया है वहाँ मीमांसा दर्शन में इसे प्रत्यक्ष अंगीकार किया गया है। वेदान्त दर्शन भी व्यावहारिक दृष्टि से काल को स्वीकार करते हुए उसे अतीन्द्रिय एवं कार्य से अनुमित मानता है। व्याकरणदर्शन में काल अमूर्त क्रिया के परिच्छेद का हेतु है। जैन दर्शन में काल को लेकर दो मान्यताएँ हैं। एक मान्यता के अनुसार काल एक द्रव्य है तथा उसकी स्वतंत्र सत्ता है। दूसरी मान्यता के अनुसार द्रव्यों की पर्याय ही काल है। अतः उसे पृथक् द्रव्य मानने की आवश्यकता नहीं है। दिगम्बर परम्परा में निर्विवाद रूप से काल की स्वतंत्र द्रव्यता अंगीकृत है। श्वेताम्बर परम्परा में ही दार्शनिक मतभेद है। ४. काल को पृथक् द्रव्य नहीं मानने का प्रमुख तर्क है कि वर्तनादि स्वरूप काल द्रव्य की ही पर्याय है- “सो वत्तणाइरूवो कालो दव्वस्स चेव पज्जाओ।" लोकप्रकाशकार उपाध्याय विनयविजय ने काल को पृथक् द्रव्य स्वीकार न करने की मान्यता के पक्ष में तर्क दिया है कि वर्तनादि स्वरूप काल पृथक् द्रव्य नहीं हो सकता क्योंकि यदि द्रव्य की पर्याय को ही पृथक् द्रव्य स्वीकार किया जायेगा तो अनवस्था दोष उत्पन्न होगा। दूसरा तर्क यह है कि अस्तिकाय पाँच ही हैं। काल को अस्तिकाय नहीं माना गया, अतः उसे व्योम आदि अन्य द्रव्यों से पृथक् नहीं कहा जा सकता। ५. काल को पृथक् द्रव्य मानने के सम्बन्ध में अनेक तर्क हैं। यह गुणयुक्त एवं पर्याययुक्त होने से द्रव्य स्वीकार किया जाता है। उपाध्याय विनयविजय ने काल के पृथक् द्रव्यत्व की सिद्धि में नौ तर्क उपस्थित किए हैं- (१) सूर्य आदि की गति के आधार पर काल की पृथक् सत्ता सिद्ध होती है। (२) 'काल' शब्द के शुद्ध प्रयोग से भी इसकी सत्ता माननी चाहिए। (३) समय, आवलिका आदि के प्रयोग से भी काल की सिद्धि होती है। (४) समय, आवलिका आदि सूक्ष्म काल का आश्रय होने से सामान्य काल सिद्ध होता है। (५) बीज से पत्र, पुष्प एवं फल की समान काल में उत्पत्ति नहीं होती, इससे भी काल सिद्ध होता है। (६) अनेकविध ऋतुभेद की विवक्षा से काल द्रव्य सिद्ध होता है। (७) वर्तमान, भूत, भविष्य के पृथक् अनुभव से भी काल सिद्ध होता है। (८) क्षिप्र, चिर, युगपद् आदि शब्दों के प्रयोग और अनुभव से भी काल द्रव्य सिद्ध होता है। (६) आगम प्रमाण से भी काल स्वतंत्र द्रव्य सिद्ध होता है। व्याख्याप्रज्ञप्ति, उत्तराध्ययनसूत्र, अनुयोगद्वारसूत्र आदि आगमों में छह द्रव्यों की गणना कर उनका नामोल्लेख किया गया है। पंचास्तिकाय, नियमसार, गोम्मटसार आदि दिगम्बर ग्रन्थों में भी छह द्रव्यों में
SR No.022332
Book TitleLokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Jain
PublisherL D Institute of Indology
Publication Year2014
Total Pages422
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
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