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________________ 327 काललोक वृत् धातु से भाव और कर्म अर्थ में युक् प्रत्यय अथवा तच्छील अर्थ में युच् प्रत्यय लगकर 'वर्तना' शब्द बनता है। तत्त्वार्थराजवार्तिक में भट्ट अकलंक और तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक में आचार्य विद्यानन्द स्वामी वर्तना शब्द का स्वरूप स्पष्ट करते हैं कि प्रत्येक द्रव्य स्वद्रव्य पर्याय में प्रति समय स्वसत्ता की अनुभूति करते हैं वही स्वसत्तानुभूति वर्तना है। इसका तात्पर्य है कि धर्मादि द्रव्य अपनी अनादि और आदिमान् सभी पर्यायों में प्रतिक्षण उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यात्मक स्वरूप का अनुभव करते हैं, यही वर्तना है। उपाध्याय विनयविजय ने सूक्ष्म और स्थूल दो रूपों से वर्तना को परिभाषित किया है। सूक्ष्म रूप में परमाणु आदि द्रव्यों की परमाण्वादिक रूप में स्थिति होना वर्तना है और स्थूल रूप में परमाणु आदि की नवीन अथवा जीर्ण रूप में स्थिति होना भी वर्तना है। ___ "द्रव्यस्य परमाण्वादेर्या तद्रूपतया स्थितिः । नव जीर्णतया वा सा वर्तना परिकीर्तिता।। ६८ प्रत्येक द्रव्य की प्रतिक्षण वर्तना पर्याय के अनुसार भिन्न-भिन्न होती है। परन्तु व्यवहार से सादृश्योपचार के कारण सभी वर्तनाएँ एक ही कही जाती हैं। द्रव्य का अपनी द्रव्यत्व जाति का त्याग किए बिना द्रव्य के स्वाभाविक लक्षणों में विकार उत्पन्न होना अथवा प्रायोगिक परिवर्तन होना परिणाम है। धर्मास्तिकायादि द्रव्यों का अपने स्वरूप को त्यागे बिना पर्यायों में परिवर्तन होना परिणाम कहलाता है। तात्पर्य यह है कि द्रव्य की मौलिक सत्ता में कोई भी परिवर्तन हुए बिना उसकी पूर्व पर्याय की निवृत्तिपूर्वक उत्तरपर्याय की उत्पत्ति होती है यही परिणाम है। यथा जीवद्रव्य के शरीर रूपी पदार्थ का बाल अवस्था आदि वयरूप पर्याय में परिणमन होता है परन्तु जीवद्रव्य के द्रव्यत्व में किसी भी प्रकार का परिवर्तन नहीं होता है। इस पर्याय परिणमन में भी कालद्रव्य ही उपकारी है। उपाध्याय विनयविजय ‘परिणाम' को उसके उत्पत्ति कारण सहित परिभाषित करते हैं 'द्रव्याणां या परिणतिः प्रयोगविस्रसादिजा। नवत्वजीर्णताद्या च परिणामः स कीर्तितः ।। ६६ परिणाम के सादि और अनादि दो भेद हैं। दूध का दही बनना, स्वर्ण का मुद्रा अथवा अंगूठी बनना आदि परिणाम सादि परिणाम' हैं तथा धर्मास्तिकायादि परिणाम अनादि परिणाम है।" यह परिणाम तीन प्रकार से होता हैं1. प्रयोग परिणाम- जीव के प्रयत्न से पदार्थ की पर्यायों में होने वाला परिणमन प्रयोग परिणाम है, यथा- भोजन से रस, रक्त आदि का परिणमन प्रयोग परिणाम है। 2. स्वाभाविक परिणाम- अजीव द्रव्यों की पर्यायों में परिणमन होना स्वाभाविक परिणाम है।
SR No.022332
Book TitleLokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Jain
PublisherL D Institute of Indology
Publication Year2014
Total Pages422
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
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