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________________ 321 काललोक द्रव्यों की प्रतीति हो सकती है। गोम्मटसार- "छप्पंचणवविहाणं अत्थाणं जिणवरोवइट्ठाणं । आणाए अहिगमेण य सद्दहणं होइ सम्मत्तं ।। जिनवर के द्वारा उपदिष्ट छह द्रव्य, पंच अस्तिकाय, नवपदार्थों का आज्ञा से और अधिगम से श्रद्धान करना सम्यक्त्व है। गोम्मटसार- "वत्तणहेदू कालो वत्तणगुणमविय दव्वणिचयेसु। कालाधारेणेव य वटेंति इ सव्वदव्वाणि।"२६ द्रव्य की पर्याय वर्तन कराने वाला काल है। द्रव्यों में परिवर्तन गुण होते हुए भी काल के आधार से सर्व द्रव्य वर्तते हैं। ___ आचार्य कुन्दकुन्द के नियमसार, भट्ट अकलंक के तत्त्वार्थराजवार्तिक और उपाध्याय विनयविजय के लोकप्रकाश में काल द्रव्य की सिद्धि के युक्तिपूर्वक प्रमाण मिलते हैं। लोकप्रकाशकार ने युक्तियों की विस्तृत चर्चा की है। १. लोक में समय आदि पर्यायों की सत्ता का हम अनुभव करते हैं। समयादि का यह काल विशेष व्यवहार सामान्य कालद्रव्य के बिना नहीं हो सकता है, क्योंकि सामान्य के बिना विशेष का अस्तित्व ही नहीं रहता है। अतः इस अनुमान से कालद्रव्य सिद्ध है। २. आकाश द्रव्य वर्तना करने वाले द्रव्यों का आधार होता है, परन्तु वह वर्तना की उत्पत्ति में सहकारी नहीं हो सकता। अपितु स्वयं उस द्रव्य की वर्तना में भी कोई अन्य निमित्त बनता है। वह अन्य निमित्त कालद्रव्य ही है, क्योंकि वर्तन ही कालद्रव्य का लक्षण है। " ३. सभी द्रव्यों की सत्ता में वर्तना निमित्त हेतु बनता है। कालद्रव्य का यह वर्तन गुण स्वयं का उपादान हेतु होता है। फलतः वर्तना सत्ता का उपकार करती है। दूसरे द्रव्यों की सत्ता को सिद्ध करने के साथ-साथ वर्तना स्व कालद्रव्य की सत्ता को भी स्वतः सिद्ध कर देती है।३२ ४. सूर्य की गति से द्रव्यों में वर्तना नहीं हो सकती, क्योंकि सूर्य का गमन करना भी एक क्रिया है जिसमें भूत, भविष्यत, वर्तमान कालिक व्यवहार देखे जाते हैं। अतः सूर्य की वर्तना में किसी अन्य द्रव्य का निमित्त होता है और वह अन्य द्रव्य 'काल' है। ५. वैशेषिक दार्शनिक घट, पट आदि कार्य से परमाणु रूप कारण का अनुमान करते हैं। उसी प्रकार मनुष्य क्षेत्र (अढ़ाई द्वीप) के अन्दर विचरण करने वाले सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र की गति से कालद्रव्य की अनुमानतः सिद्धि होती है। ६. 'काल' यह शब्द उच्चरित होते ही किसी न किसी द्रव्य को इंगित करता है। क्योंकि 'काल' यह
SR No.022332
Book TitleLokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Jain
PublisherL D Institute of Indology
Publication Year2014
Total Pages422
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
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