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________________ सप्तम अध्याय काललोक . उपाध्याय विनयविजय ने द्रव्यलोक में सैंतीस द्वारों से जीवों का वर्णन किया है और क्षेत्रलोक का तीन वर्गों में विभाजन कर विस्तृत वर्णन किया है। काललोक के अन्तर्गत 'काल' क्या है, इसके स्वरूप पर स्पष्ट चर्चा कर उसके भेदों का निरूपण किया है। वैशेषिक दर्शन में "पृथिव्यापस्तेजो वायुराकाशं कालो दिगात्मा मन इति द्रव्याणि' सूत्र के द्वारा काल का द्रव्यत्व अंगीकार किया गया है। व्याकरण दर्शन' में यह काल अमूर्त क्रिया का परिच्छेद-हेतु माना जाता है। योग दर्शन' में क्षण पारमार्थिक है और क्षण के अतिरिक्त काल मुहूर्त आदि बुद्धिकल्पित है। प्राचीन भारतीय परम्परा में 'कालवाद' नामक एक सिद्धान्त प्रचलित था, जिसके अनुसार सभी कार्य काल के द्वारा ही सम्पन्न माने गए हैं। यथा - कालः पचति भूतानि, कालः संहरते प्रजाः । कालः सुप्तेषु जागर्ति, कालो हि दुरतिक्रमः ।।" अथर्ववेद के कालसूक्त, शिवपुराण, विष्णुपुराण, उपनिषद्वाङ्मय और महाभारत में भी काल का निरूपण देखा जाता है। जैनदर्शन में स्वीकृत षड्द्रव्यों में धर्म, अधर्म, आकाश, जीव, पुद्गल और काल की गणना की जाती है। परन्तु कुछ जैन दार्शनिक काल की स्वतन्त्र द्रव्यता को स्वीकार नहीं करते हैं। वाचक उमास्वाति द्वारा रचित तत्त्वार्थसूत्र के 'कालश्चेत्येके' सूत्र (५.३८) में इस मतभेद का संकेत मिलता है। दिगम्बर परम्परा में काल की निर्विवाद स्वतन्त्र द्रव्यता स्वीकृत है। आचार्य कुन्दकुन्द (प्रथम शती ई.) के प्रवचनसार" में, पूज्यपाद देवनन्दि (चतुर्थ शती) के सर्वार्थसिद्धि" में, भट्ट अकलंक (७२०-७६० ई.) के राजवार्तिक" में और विद्यानन्द स्वामी (७७५ से. ८४० ई.) के तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक में काल के पृथक् द्रव्य होने का उल्लेख प्राप्त होता है। श्वेताम्बर परम्परा के कुछ जैन विचारक जीव और अजीव द्रव्यों की पर्यायों से पृथक् काल द्रव्य का स्वतंत्र अस्तित्व स्वीकार नहीं करते हैं, किन्तु कुछ श्वेताम्बराचार्य काल के स्वतन्त्र द्रव्यत्व की सिद्धि करते हैं। श्वेताम्बर परम्परा के इन दोनों मतों का उल्लेख जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण (५वीं शती) के विशेषावश्यक भाष्य, हरिभद्रसूरि (८वीं शती) के धर्मसंग्रहणि और उपाध्याय विनयविजय (१७वीं शती) के लोकप्रकाश में उपलब्ध होता है।
SR No.022332
Book TitleLokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Jain
PublisherL D Institute of Indology
Publication Year2014
Total Pages422
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
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