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लोकप्रकाश का समीक्षात्मक अध्ययन
(ग) गरुडपुराण, 1/54/3
(घ) श्रीमद्भागवत्, 5/1/32-33 ६३. (क) गरुडपुराण, 1/54/5
(ख) विष्णुपुराण, 2/2/6
(ग) अग्निपुराण, 108/2 ६४. अभिधर्मकोश, 3, 45-87 ६५. जैन तत्त्व विद्या- मुनि प्रमाणसागर, पृष्ठ सं. 69-70. ६६. लोकप्रकाश, 15.31-32 ६७. लोकप्रकाश, 15.30 ६८. लोकप्रकाश, 15.33-35 ६६. लोकप्रकाश, 15.36-37 ७०. लोकप्रकाश, 15.259-260 ७१. लोकप्रकाश, 15.261-262 ७२. लोकप्रकाश, 16.2 ७३. लोकप्रकाश, 16.3 ७४. एक योजन का उन्नीसवां विभाग कला कहलाता है। अर्थात् उन्नीस कलाओं का एक योजन होता
है।- लोकप्रकाश, 16.12 ७५. लोकप्रकाश, 16.35, 46 एवं 47 ७६. लोकप्रकाश, 16.42-44 ७७. लोकप्रकाश, 16.36 ७८. लोकप्रकाश, 16.181 ७६. लोकप्रकाश, 16.214 ८०. लोकप्रकाश, 16.215 ८१. लोकप्रकाश, 16.236 १२. लोकप्रकाश, 16.237-241 ८३. लोकप्रकाश, 16.247-249 १४. लोकप्रकाश, 16.236-255 १५. लोकप्रकाश, 16.260-261 ८६. लोकप्रकाश, 16.262 १७. लोकप्रकाश, 16.256 ८८. लोकप्रकाश, 16.328 ५६. लोकप्रकाश, 16.336 और 341 ६०. लोकप्रकाश, 16.342-343 ६१. लोकप्रकाश, 16.353 ६२. लोकप्रकाश, 16.393 ६३. लोकप्रकाश, 16.409 ६४. लोकप्रकाश, 19.26 ६५. लोकप्रकाश, 19.27 ६६. लोकप्रकाश, 19.34 और 36 ६७. लोकप्रकाश, 19.55 ६८. लोकप्रकाश, 19.56 और 57 ६६. लोकप्रकाश, 19.58 १००. लोकप्रकाश, 19.59