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________________ 286 लोकप्रकाश का समीक्षात्मक अध्ययन रज्जू धूमप्रभा के अधोभाग में और पाँचवां रज्जू तमः प्रभा के अधोभाग में समाप्त होता है। पूर्वोक्त क्रम से छठा रज्जू महातमः प्रभा के नीचे अन्त में समाप्त होता है और इसके आगे सातवां रज्जू लोक के तल भाग में समाप्त होता है और इसके आगे सातवां रज्जू लोक के तल भाग में समाप्त होता है। इस तरह अधोलोक में सात रज्जु का विभाग कहा है।" मध्यलोक के ऊपरी भाग से सौधर्म विमान के ध्वजदण्ड पर्यन्त एक लाख योजन कम डेढ़ रज्जू प्रमाण ऊँचाई है। इसके आगे डेढ़रज्जू माहेन्द्र और सनत्कुमार देवलोक के ऊपरी भाग में समाप्त होता है। इसके अनन्तर आधा रज्जू ब्रह्मोत्तर देवलोक के ऊपरी भाग में पूर्ण होता है। इसके पश्चात् आधारज्जू लांतक देवलोक के ऊपरी भाग में, आधा रज्जू महाशुक्र के ऊपरी भाग में और आधा रज्जू सहस्रार के ऊपरी भाग में समाप्त होता है। इसके अनन्तर आधा रज्जू आनत स्वर्ग के ऊपरी भाग में और आधा रज्जू आरण स्वर्ग के ऊपरी भाग में पूर्ण होता है। तत्पश्चात् एक रज्जू की ऊँचाई में नौ ग्रैवेयक और पाँच अनुत्तर-विमान हैं। इस प्रकार ऊर्ध्वलोक में रज्जू का विभागीकरण किया गया है।" अधोलोक का मुख विस्तार अर्थात् लम्बाई एक रज्जू प्रमाण, भूमि विस्तार अर्थात् चौड़ाई ७ रज्जू प्रमाण और ऊँचाई सात रज्जू प्रमाण है। ऊर्ध्वलोक मध्यलोक के समीप एक रज्जू, मध्य में पाँच रज्जू और ऊपर पुनः एक रज्जू लम्बा, सात रज्जू चौड़ा और सात रज्जू प्रमाण ऊँचा है।" त्रसनालीस्वरूप ___ वृक्ष में स्थित सार की तरह लोक के बहुमध्यभाग में एक रज्जू लम्बी, एक रज्जू चौड़ी और कुछ कम तेरह रज्जू ऊँची एक त्रसनाली होती है। सातवें नरक के नीचे एक रज्जू प्रमाण कलकल नामक स्थावर लोक है, यहाँ त्रस जीव नहीं रहते अतः त्रसनाली (१४-१) १३ रज्जू ऊँची है। सनाली त्रस जीवों की आश्रय स्थली होती है। इस नाली से बाहर त्रस जीव नहीं रहते हैं, जबकि स्थावर जीव सम्पूर्ण लोक में हैं। सप्तम नरक के मध्यभाग में ही नारकी जीव हैं। इसी प्रकार ऊर्ध्वलोक में सर्वार्थसिद्ध से ईषत्याग्भार" नामक पृथिवी (मुक्त जीवों का निवास स्थान) के मध्य के १२ योजन के अन्तराल में तथा उससे ऊपर त्रस जीव नहीं रहते हैं।" खंडुक प्रमाण (रज्जु का चतुर्थाश) में यह त्रसनाली ५६ खंडुक ऊँची और ४ खंडुक चौड़ी होती है। पाँच खड़ी और सत्तावन आड़ी पंक्तियाँ किसी पट्टे पर लिखने के समान त्रसनाली की आकृति होती है।"
SR No.022332
Book TitleLokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Jain
PublisherL D Institute of Indology
Publication Year2014
Total Pages422
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
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