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________________ 257 जीव-विवेचन (4) बराबर हैं। ५७.पर्याप्त बादर वायुकायिकों की अपेक्षा बादर तेजस्कायिक अपर्याप्त असंख्यात गुणा हैं। ५८.इनकी अपेक्षा प्रत्येक शरीर बादर वनस्पतिकायिक अपर्याप्त असंख्यात गुणा हैं। ५६.इनकी अपेक्षा बादर निगोद के अपर्याप्तक असंख्यात गुणा हैं। ६०.उनकी अपेक्षा बादर पृथ्वीकायिक अपर्याप्त असंख्यात गुणा हैं। ६१.६२ एवं ६३ बादर पृथ्वीकायिक अपर्याप्त की अपेक्षा क्रमशः बादर अप्कायिक अपर्याप्त, बादर वायुकायिक अपर्याप्त जीव असंख्यात गुणा अधिक हैं। ६४.६५ एवं ६६ बादर वायुकायिक अपर्याप्त जीव की अपेक्षा से अनुक्रम से सूक्ष्म तेजस्कायिक अपर्याप्त, सूक्ष्म पृथ्वीकायिक अपर्याप्त, सूक्ष्म अप्कायिक अपर्याप्त, सूक्ष्म वायुकायिक अपर्याप्त असंख्यात गुणा अधिक हैं। ६७.सूक्ष्म वायुकायिक अपर्याप्तक जीवों की अपेक्षा सूक्ष्म तेजस्कायिक पर्याप्त संख्यातगुणा हैं क्योंकि अपर्याप्तक सूक्ष्म जीवों की अपेक्षा पर्याप्तक सूक्ष्म स्वभाव से ही अधिक होते हैं। प्रज्ञापना में कहा भी गया है जीवाणमपज्जत्ता बहुतरगा बायराण विन्नेया। सुहुमाण य पज्जत्ता ओहेण य केवली विति।। जीवानामपर्याप्तकाः बहुतरकाः खलु विज्ञेयाः । सूक्ष्माणाञ्च पर्याप्ताः ओघेन च केवलिनो विदन्ति।। ६८.६६ एवं ७०. सूक्ष्म तेजस्कायिक पर्याप्त जीवों की अपेक्षा सूक्ष्म पृथ्वीकायिक पर्याप्त विशेषाधिक हैं। अनुक्रम से सूक्ष्म अप्कायिक पर्याप्त, सूक्ष्म वायुकायिक पर्याप्त जीव संख्यात गुणा से विशेषाधिक हैं। ७१.सूक्ष्म वायुकायिक पर्याप्त जीव की अपेक्षा सूक्ष्म निगोद के अपर्याप्तक जीव असंख्यात गुणा ७२.उनसे पर्याप्त सूक्ष्म निगोद जीव संख्यातगुणा हैं। ७३.अपर्याप्त तेजस्कायिक से लेकर पर्याप्त सूक्ष्म निगोद तक के जीव सामान्य रूप से असंख्यात लोकाकाशों के प्रदेशों की राशि के बराबर हैं, किन्तु असंख्यात लोक असंख्यात भेद वाला है, अतएव यह अल्पबहुत्व संगत ही है। ७४.सूक्ष्म निगोद के अपर्याप्तकों की अपेक्षा अभवसिद्धिक-अभव्य अनन्तगुणा अधिक हैं क्योंकि वे जघन्य युक्त अनन्त प्रमाण वाले हैं।
SR No.022332
Book TitleLokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Jain
PublisherL D Institute of Indology
Publication Year2014
Total Pages422
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
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