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पारिभाषिक शब्दावली
अर्थात् वही काया प्राप्त करता है तो उसे कायस्थिति कहा जाता है । ( ३.६४)
(२१) काल - द्रव्य से अभेद रूप में रहे हुए वर्तना, परिणाम, क्रिया, परत्व - अपरत्व मुख्य विवक्षा से वर्तनादि पर्याय रूप काल जीव और अजीव रूप है।
(२२) क्रिया - देशान्तर की प्राप्ति रूप एक स्थान से दूसरे स्थान में जाना क्रिया है । ( २८.६६) (२३) कुल - जिस योनि में जीव उत्पन्न हो वह कुल कहलाता है । ( ३.६६)
(२४) केवलज्ञान - मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यव इन चार ज्ञानों की जिसमें अल्पमात्र भी अपेक्षा न हो, जो अकेला जीव है, अनन्त पदार्थ जिसमें ज्ञेय हैं इससे वह अनन्त है, आवरणों का क्षय हो जाने से जो विशुद्ध है, सम्पूर्ण है, इसके समान कोई न होने से जो असाधारण है और भूत, भविष्य एवं वर्तमान पदार्थों के स्वरूप को जो स्वतः प्रदीप्त करने वाला है, ऐसा ज्ञान केवलज्ञान है। (३.८६७-८६६)
(२५) खंडुक प्रमाण - रज्जु का चतुर्थ अंश जिसकी लम्बाई, चौड़ाई और ऊँचाई समचौरस हाथ के समान बराबर-बराबर होती है । ( १२.१५)
(२६) गति - जीवों की प्राप्त जन्म से अन्य जन्म में जाने की योग्यता गति कहलाती है । ( ५.२७६ ) (२७) गुणस्थान - जीव के ज्ञान आदि गुणों का स्थान गुणस्थान है। इन गुणों के स्वरूप में शुद्धि, अशुद्ध, प्रकर्ष एवं अपकर्ष इन चार की अपेक्षा से चौदह भेद हैं। ( ३.११३३)
(२८) घनांगुल - प्रतरांगुल को सूच्यंगुल द्वारा गुणा करने से घनांगुल माप आता है। (१.५१)
(२६) दर्शन- सामान्य रूप से वस्तु का बोध होना दर्शन है। ( ३.१०४६) दर्शन का यह क्ष उपचार नय से है। विशुद्ध नय से दर्शन का लक्षण अनाकार का ज्ञान है। ( ३.१०५१) (३०) देश- दो प्रदेश से लेकर अन्तिम प्रदेश तक का स्कन्धबद्ध विभाग देश कहलाता है । ( ११.८ ) (३१) ध्यान - मन की स्थिरता, जो अन्तर्मुहूर्त्त तक रहती है। ध्यान चार प्रकार का है - आर्त्तध्यान, रौद्रध्यान, धर्मध्यान और शुक्लध्यान । ( ३०.४११ )
(३२) धारणा- निश्चित किए पदार्थ को अन्तःकरण में धारण करना धारणा है। (३.७१३)
( ३३ ) निगोद - सूक्ष्म वनस्पतिकाय वाले अनन्त जीवों का साधारण शरीर निगोद कहलाता है । ( ४. ३२)
(३४) परमाणु- सूक्ष्म और व्यावहारिक दो प्रकार के परमाणु होते हैं। अनन्त सूक्ष्म परमाणुओं का एक व्यावहारिक परमाणु होता है। यह भी इतना सूक्ष्म होता है कि तीव्र शस्त्र द्वारा भी इसके टुकड़े नहीं हो सकते हैं। माप करने का सर्वप्रथम माप परमाणु कहा जाता है। परमाणु का