________________
172
लोकप्रकाश का समीक्षात्मक अध्ययन
छल-कपट की अभिवृत्ति का नाम मायासंज्ञा है। (8) लोभ संज्ञा- 'लोभसंज्ञा गृद्धिरूपा अर्थात् लोभमोहनीय के उदय से सचित्त-अचित्त पदार्थों की लालसा लोभसंज्ञा कहलाती है। परिग्रह संज्ञा से लोभसंज्ञा में यह भेद है कि परिग्रह संज्ञा में प्राप्त वस्तु, व्यक्ति आदि के प्रति ममत्व एवं आसक्ति भाव होता है, जबकि लोभसंज्ञा में अधिकाधिक तृष्णा या पाने की अभिलाषा रहती है। (७) लोकसंज्ञा- 'लोकसंज्ञा स्वछन्दघटितविकल्परूपा लौकिकाचरिता, यथा न सन्त्यनपत्यस्य लोकाः, श्वानो यक्षाः, विप्राः देवाः, काकाः पितामहः, बर्हिणां पक्षपातेन गर्भ इत्येवमादिका।"
स्वच्छन्द रूप से घटित-विकल्पस्वरूप, लोक में आचरित वृत्ति लोकसंज्ञा कहलाती है। दूसरे शब्दों में लोक की अनुपादेय रूढ़ प्रवृत्तियों का अनुसरण करने की वृत्ति लोकसंज्ञा कहलाती है। उदाहरण के लिए सन्तानहीन की सद्गति नहीं है, कुत्ते यक्ष होते हैं, ब्राह्मण देव होते हैं, कौन पितामह होते हैं, मयूरों के पंख गिरने से गर्भ होता है इत्यादि कथन लोकसंज्ञा को इंगित करते हैं। यह संज्ञा ज्ञानावरण के क्षयोपशम एवं मोह के उदय से उत्पन्न होती है। (10) ओघसंज्ञा- 'ओघसंज्ञा तु अव्यक्तोपयोगरूपा वल्लिवितानारोहणादि लिंगा ज्ञानावरणीयाल्पक्षयोपशमसमुत्था द्रष्टव्येति। बिना उपयोग के अर्थात् सोच विचार के बिना ही किसी कार्य को करने की वृत्ति या प्रवृत्ति अथवा सनक ओघसंज्ञा है। ज्ञानावरण कर्म के अल्प क्षयोपशम से यह संज्ञा प्रकट होती है। यथा वल्ली का वृक्ष पर आरोहण करना, बैठे-बैठे पैर हिलाना, चलते-चलते फूल-पत्ती तोड़ना आदि। (11-12)सुख संज्ञा एवं दुःख संज्ञा- 'सुखदुःखसंज्ञे सातासातानुभवरूपे वेदनीयोदयजे। साता और असाता की अनुभूति स्वरूप संज्ञा क्रमशः सुख संज्ञा एवं दुःख संज्ञा कहलाती है। ये दोनों वेदनीय के उदय से उद्भूत होती हैं। (13) मोहसंज्ञा- 'मोहसंज्ञा मिथ्यादर्शनरूपा मोहोदयात्" मोहसंज्ञा मिथ्यादर्शनरूप होती है। मोहनीय के उदय से उत्पन्न मोहसंज्ञा पदार्थ के सत् स्वरूप को प्रकट नहीं होने देती है। (14) विचिकित्सा संज्ञा- 'विचिकित्सा संज्ञा चित्तविलुप्तिरूपा मोहोदयात् ज्ञानावरणीयोदयाच्च" अर्थात् मोह के उदय से ज्ञान के आवरित होने पर चित्त का विक्षिप्त रूप विचिकित्सा संज्ञा कहलाता है, यथा- कई बार माताएँ संतान के मोह में विवेकपूर्वक कार्य नहीं कर पाती हैं। यह विचिकित्सा संज्ञा का ही परिणाम है। (15) शोकसंज्ञा- 'शोकसंज्ञा विप्रलापवैमनस्य रूपा" अर्थात् किसी के वियोग में विप्रलाप करना अथवा खिन्न मन होना शोकसंज्ञा कहलाती है। यह भी मोहोदयजा है। (16) धर्मसंज्ञा- 'क्षमाद्यासेवनरूपा मोहनीयक्षयोपशमाज्जायते, एताश्च विशेषोपादाना