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जीव-विवेचन (2) मनुष्यों का लेश्या परिणाम अन्तर्मुहूर्त मात्र स्थायी रहता है उसके पश्चात् बदल जाता है। जैसाकि कहा है
अंतोमुहत्तंमि गए, सेसए आउं (चेव)।
लेस्साहिं परिणयाहिं, जीवा वच्चंति परलोयं ।।४२ अतएव जो तिर्यंच एवं मनुष्य गति का जीव जिस लेश्या से युक्त होकर उत्पन्न होते हैं, वे कदाचित् उसी लेश्या से युक्त होकर उद्वर्तन करते हैं एवं कदाचित् नहीं भी।३ शुद्धत्व और प्रशस्तत्व
भावों की शुद्धता-अशुद्धता के आधार पर जीवों के तीव्रतम, तीव्रतर, तीव्र, मंद, मंदतर और मंदतम काषायिक परिणाम प्राप्त होते हैं। उत्तराध्ययन, तत्त्वार्थराजवार्तिक, पंचसंग्रह आदि के आधार पर वे परिणाम विभिन्न लेश्याओं में इस प्रकार हैं1.कृष्ण लेश्या- कृष्ण लेश्या में परिणमन करने वाला जीव भाव से तीव्र क्रोध करने वाला, वैर को न छोड़ने वाला, धर्म एवं दया से रहित, दुष्ट, स्वच्छन्द, कार्य करने में विवेकशून्य, कलाचातुर्य रहित, मानी, मायावी, आलसी और भीरु होता है। इस तरह कृष्णलेश्यी जीव के भाव अप्रशस्त एवं अशुद्ध होते हैं। 2.नीललेश्या- नील लेश्या में परिणमन करने वाला जीव आलस्य, मूर्खता, विवेकहीनता, अतिविषयाभिलाष, अतिगृद्धि, माया, तृष्णा, अतिमान, वंचना अनृतभाषण, चपलता, अतिलोभ, कायरता आदि अशुद्ध तीव्रतर कषाय भावों से युक्त होता है।" 3.कापोत लेश्या- तीव्र कषाय-भावों से युक्त कापोतलेश्यी जीव के भाव परिणाम मात्सर्य (ईर्ष्या भाव युक्त), पैशुन्य (चुगली करना), परपरिभव, आत्मप्रशंसा, परपरिवाद (परनिन्दा), जीवन नैराश्य, प्रशंसकों को धन देना, स्व हानि-वृद्धि के ज्ञान से शून्य, कर्त्तव्य-अकर्त्तव्य विवेकशून्य, युद्ध मरणोद्यम
आदि रूपों में प्रकट होते हैं।" 4.तेजोलेश्या- मंद कषाय वाले तेजोलेश्या युक्त जीव के भाव परिणाम कर्त्तव्य-अकर्त्तव्य एवं सेव्य-असेव्य के विवेक से युक्तता, दयालुता, दान में रतता, सत्यवादिता, मृदु-स्वभाव, स्वकार्य पटुता, सर्वधर्मसमदर्शित्व आदि रूप में प्रकट होते हैं।" 5.पद्मलेश्या- मंदतर कषाय वाले पद्मलेश्यी जीव के भाव-परिणाम सत्यवाक्, क्षमाशीलता, त्यागप्रवृत्ति, भद्रता, उत्तमकार्यकर्ता, सात्त्विकदान, पाण्डित्य, साधु-सज्जन के गुण पूजन में रत रहना आदि रूप में प्रकट होते हैं। 6.शुक्ललेश्या- मंद कषाय वाले शुक्ललेश्यी जीव के भाव परिणाम निर्वेरता, वीतरागता,