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________________ 122 लोकप्रकाश का समीक्षात्मक अध्ययन बनता है। पाँचवें समय में अवकाशान्तरालों को सिकोड़ते हैं, तत्पश्चात् छठे समय में मथानी को समेटते हैं और सातवें समय में कपाट को संकुचित करते हैं। तदनन्तर आठवें समय में दण्ड को समेटकर मूल शरीर में ही स्थित हो जाते हैं। इस विधि से कर्मक्षय कर अन्तर्मुहूर्त में मोक्षगमन करते हैं। प्रत्येक केवली केवलिसमुद्घात करे यह आवश्यक नहीं है। जिनकी आयुष्य कर्म की स्थिति कम होती है और वेदनीय, नाम एवं गोत्र कर्मों की स्थिति एवं प्रदेश अधिक होते हैं उन सबको समान करने हेतु सर्वज्ञ समुद्घात करते हैं। जिन केवलियों का आयुष्यकर्म बंधन से भवोपग्राही वेदनीय आदि अन्य कमों के तुल्य होता है, वे केवलिसमुद्घात नहीं करते हैं। मुक्तदशा में कर्म शेष नहीं रहते और न ही मुक्त जीव नये आयुकर्म का बंध कर सकते हैं। इसी कारण केवली केवलि-समुद्घात के द्वारा वेदनीयादि तीन कमों के प्रदेशों की विशिष्ट निर्जरा करके तथा उनकी लम्बी स्थिति का घात करके उन्हें आयुष्यकर्म के बराबर कर लेते हैं, जिससे चारों का क्षय एक साथ हो सके।" समुद्घात : अतीत-अनागत वेदना, कषाय, मारणान्तिक, वैक्रिय और आहारक समुद्घात सभी प्राणी सर्व जातियों में अनन्त बार करते हैं। कोई-कोई लघु कर्मी जीव समुद्घात नहीं करते हैं, कोई एक-दो बार और कोई अनेक बार करते हैं। बहुकर्मी जीव संख्यात, असंख्यात और अनन्त बार समुद्घात करते हैं।" सूक्ष्म निगोद के जीव निगोद के ही कायान्तर में दो-तीन समुद्घात अनन्त बार अनुभव करते हैं।" मनुष्य जन्मों में एक जीव को आहारक समुद्घात कुल चार ही होते हैं।" सातवां केवलि समुद्घात मनुष्य जन्म से भिन्न अतीत काल में नहीं होता और वह भी एक बार ही होता है। समुद्घातःकिसमें, कितना और क्यों? तेजोलब्धि, आहारकलब्धि और केवलित्व का अभाव होने से नारकों में प्रथम चार समुद्घात होते हैं।" दस भवनपति देवों में प्रारम्भ के चार और पाँचवां तैजस समुद्घात भी होता है।" पृथ्वीकायिकादि पांच स्थावरों को प्रथम तीन समुद्घात होते हैं और वायुकाय में एक वैक्रिय समुद्घात मिलाकर कुल चार समुद्घात होते हैं और सूक्ष्म एकेन्द्रियों को तीन समुद्घात होते हैं। सम्मूर्छिम तिर्यंच पंचेन्द्रिय में तीन समुद्घात होते हैं तथा गर्भज तिर्यंच पंचेन्द्रियों से लेकर वैमानिकों तक पाँच समुद्घात होते हैं। उनमें आहारकलब्धि और केवलित्व न होने से अन्तिम दो समुद्घात नहीं होते हैं। संख्यात आयुष्य वाले मनुष्य सातों समुद्घातों से युक्त हो सकते हैं और असंख्यात आयुष्य वाले
SR No.022332
Book TitleLokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Jain
PublisherL D Institute of Indology
Publication Year2014
Total Pages422
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
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