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नवतत्त्वसंग्रहः अपेक्षा | गुप्तियें अगुप्ति ३ | निवेसकी १ तप | निवडमाया ३ | २ अमाइ ३| मान २
धर्मइह | षट्कायना अविरति | रहित १ कुशास्त्री असरल ४ अकुतूहल ४] माया ३ | ध्यान ३ लक्षण है | तीव्र आरंभी १ । १ मायावी १ | अपने दोष विनयवंत ५/ लोभ ४ | शुक्ल पिण सर्वकू अहितकारी १| अहीकाता (?) | आच्छादक ५ | विनय करे| प्रशांत । ध्यान देवता
| साहसिक अनविचारें | समाचार विषये कपट में प्रवर्ते ६ 'दमतेंद्री | चित्त ५ | ध्यावे ४ आदि के | कार्यकारी १ जीव- | निर्लज्ज १ ६ मिथ्यादृष्टि | ७ शास्त्र | दमिता- | | प्रशांत
साथ | हिंसा करता शंके | विषयका लांपट्य | ७ अनार्य ८ | पढीने उप-| त्मा ६ | चित्त ५ व्यभि- | नही १ वा इसलोक | १ द्वेषी १ शठ १] उत्प्राशक | धान तप- | शुभ | दान्त
चार परलोकीना कष्टनी | जात्यादि मदवान् | आग लोक वान् ८ प्रिय योगवान् आत्मा ६ नही. शंका नही ते निद्धंस १ रस लोलुप |लक आदि में धर्मी ९ दृढ | ७ शास्त्र | पांच विशिष्ट परिणामी कहिये १ | १ सातागवेषी | फसे ऐसे | धर्मी १० । पठन | समिति उत्कट अजितेंद्रिय १ सूग | १ आरंभी से | बोले ९ दुष्ट | पापसे डरे | करीने | समिता
रहित १ एवं २१ अवरति १ वचन बोले १०/ ११ मोक्षा- | उपधान | ११ अथवा
बोल क्षुद्रिक १ अन- | चौर ११ भिलाषी १२] तपवान् | तीन गुप्ते अशुद्ध.
विचारे कार्यना | मत्सरी पर- | शुभ योग- ८ अल्प-|गुप्ता १४
कारणहार ते |संपद् असहन | वान् एवं | भाषी ९ |सराग १५ साहसिक १ | १२ द्रव्य के | तेजो ना | उपशम- | तथा
सहचर करके परिणाम |वान् १० वीततिसके उरंगते| अर्थात् |जितेंद्रिय | राग १६ तद्रूप होना सो | लक्षण जान | ११ ए | उपशांतप्र(परिणाम | लेना। लक्षण |वान् १७ कहिये सर्वत्र | २अनगारस्य | पद्मले- जितेन्द्रिय
श्याना । १८
धणी | "एतदपि ३अनागा- अनगार
रस्य स्येति एतत् लक्षणम् सम्भवति, नान्य
स्येति स्थान स्थान असंख्य प्रकर्ष । कितने ? जितने
→ व → व अपकर्ष रूप | असंख्य उत्सपिणी अशुभना | अवसर्पिणीना समय अशुभ तुल्य, क्षेत्रतः असंख्य शुभना लोक के प्रदेश नभःशुभ ८ प्रदेश तुल्य
१. इन्द्रियना उपर काबू राखनार । २. साधुनुं आ । ३. साधुमां आ संभवे छे, नहि के अन्यने विषे । ४. आ पण साधुनुं लक्षण छ। ।
एतत्
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