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नवतत्त्वसंग्रहः अथ नरकगति मिश्रवैक्रियका गुणस्थान २-पहिला, चौथा, सत्ता० १४५. मनुष्य-आयु १, तिर्यंच-आयु १, देव-आयु १ एवं ३ नही. पहिले १४५, चौथे १४५ है.
अथ देवगति संबंधि वैक्रियमिश्रयोग रचना गुणस्थान ३-पहिला, दूजा, चौथा, सत्ता० १४५. मनुष्य-आयु १, तिर्यंच-आयु १, नरक-आयु १ एवं ३ नही. ___ अथ कार्मणरचना गुणस्थान ४-पहिला, दूजा, चौथा, तेरमा, सत्ता० १४८ सर्वे सन्ति. शमि | १४४ | तीर्थंकर १ उतारे | १ | मि | १४८ | २ सा | १४४ ० २ | सा | १४६ | तीर्थंकर १, नरक-आयु १ उतारे ४] अ | १४५ | तीर्थंकर १ मिले | | ४ | अ | १४८ | तीर्थंकर १, नरक-आयु १ मिले ० ०
० । १३ | स | ८५ | रही ८५ का व्यौरा गुणस्थानवत् ___अथ वेद तीनो नव गुणस्थान लग समुच्चयगुणस्थानवत् जानना. अथ अनंतानुबंधिचतुष्क रचना गुणस्थान २ आदिके सत्ता० पहिले १४८, दूजे १४७. अथ अप्रत्याख्यान ४ रचना गुणस्थान ४ आदि सत्ता० समुच्चयगुणस्थानवत्. अथ प्रत्याख्यानमे गुणस्थान ५ आदिके रचना समच्चयगणस्थानवत. अथ संज्वलन क्रोध १, मान १. माया १ नवमे ताड लोभ दशमे ताड समुच्चयवत्. अथ अज्ञानत्रय रचना गुणस्थान २ आदिके सत्ता समुच्चयवत् जानना. अथ ज्ञानत्रय रचना गुणस्थान ९ चौथा आदि बारमे लग सत्ता १४८ समुच्चयवत्. अथ मनःपर्यायज्ञानरचना गुणस्थान ७-प्रमत्त आदि, सत्ता १४८ सर्वे समुच्चयवत्. केवलज्ञानमे सत्ता० ८५ की, गुणस्थान १३।१४ मा समुच्चयवत्. अथ सामायिक, छेदोपस्थापनीय रचना गुणस्थान ४-प्रमत्त आदि, सत्ता १४८ समुच्चयवत्. अथ परिहारविशुद्धि रचना गुणस्थान २-प्रमत्त, अप्रमत्त, सत्ताप्रकृति १४८ समुच्चयवत्. सूक्ष्मसंपराय चारित्र दशमेवत्. अथ यथाख्यात रचना ११।१२। १३।१४ मे वत्. अथ देशविरति पंचमे वत्. अथ असंयम रचना आदिके ४ गुणस्थानो वत्. अथ अचक्षु, चक्षुदर्शनरचना गुणस्थानरचनावत् गुणस्थान १२ पर्यंत. अथ अवधिदर्शन रचना अवधिज्ञानवत्. अथ केवलदर्शन केवलज्ञानवत्. अथ कृष्ण, नील लेश्या, कापोत लेश्या रचना गुणस्थान ४ प्रथमवत्. अथ तेजो, पद्मलेश्या रचना गुणस्थान ७ आदिके समुच्चयवत्. अथ शुक्ल लेश्या रचना गुणस्थान १३ आदिके रचना १४८ सत्ता० समुच्चयवत्, अथ भव्य रचना गुणस्थानवत्. अथ अभव्य रचना गुणस्थान १-मिथ्यात्व, सत्ताप्रकृति १४१. मिश्रमोह० १, सम्यक्त्वमोह० १, तीर्थंकर १, आहारकद्विक २, आहारकबंधन १, आहारकसंघातन १ एवं ७ नही. अथ उपशमसम्यक्त्वरचना गुणस्थान ८-अविरतिसम्यग्दृष्टि आदि, सत्ता० सर्व गुणस्थानोकी १४८ जाननी. अथ क्षयोपशमसम्यक्त्व रचना गुणस्थान ४-अविरतिसम्यग्दृष्टि आदि, सत्ता० १४८ समुच्चयगुणस्थानवत्. अथ क्षायिक सम्यक्त्वरचना गुणस्थान ११-अविरतिसम्यग्दृष्टि आदि, सत्ताप्रकृति १४१ अस्ति. अनंतानुबंधि ४, मिथ्यात्व १, मिश्रमोह० १, सम्यक्त्वमोह० १ एवं ७ नास्ति. यंत्र नाम मात्र लिख्या. विस्तार समुच्चयसत्ताथी जानना.