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नवतत्त्वसंग्रहः उद्योत १, पर्याप्त १, साधारण १, सूक्ष्म १, यश १, नीच गोत्र १, अंतराय ५ एवं ८० है, शेष
४२ नही.
मिथ्यात्व १, आतप १, सूक्ष्मत्रिक ३, पराघात १, उच्छ्वास १,
उद्योत १ एवं ८ विच्छित्ति २ सा| ७२___ अथ विकलत्रय रचना गुणस्थान २ आदिके उदयप्र० ८२. ज्ञाना० ५, दर्शना० ९, वेदनीय २, मिथ्यात्व १, कषाय १६, हास्य आदि६, नपुंसकवेद १, तिर्यंच-आयु १, तिर्यंचद्विक २, औदारिकद्विक २, हुंडक १, छेवट्ठा १, विकलेंद्री स्वकीय १, तैजस १, कार्मण १, वर्ण(चतुष्क) ४, अपर्याप्त १, अथिर ६, त्रस ६, अगुरुलघु १, उपघात १, पराघात १, निर्माण १, उच्छ्वास १, उद्द्योत १, यश १, सुस्वर, अप्रशस्त गति १, नीच गोत्र १, अंतराय ५ एवं ८२ है. १ मि | ८२
मिथ्यात्व १, अपर्याप्त १, पराघात १, उच्छ्वास १,
सुस्वर, उद्योत १, दुःस्वर १, अप्रशस्त गति १ एवं ८ विच्छित्ति २ सा | ७४
००० अथ पंचेंद्री रचना गुणस्थान १४ सर्वे, उदयप्रकृति ११४ अस्ति. एकेंद्री १, थावर १, सूक्ष्म १, साधारण १, विकलत्रय ३, आतप १ एवं ८ नास्ति.. मि| १०९
मिश्रमोहनीय १, सम्यक्त्वमोहनीय १, आहारकद्विक २, तीर्थंकर १
एवं ५ उतारे. मिथ्यात्व १, अपर्याप्त १ विच्छित्ति २ सा | १०६
नरकानुपूर्वी १ उतारी, अनंतानुबंधि ४ विच्छित्ति ३, मि | १०० शेष आनुपूर्वी ३ उतारी. मिश्रमोहनीय १ मिली. मिश्रमोहनीय १ विच्छित्ति ४ अ | १०४
___ आनुपूर्वी ४, सम्यक्त्वमोहनीय १ एवं ५ मिले. पांचमेसे लेकर सर्व गुणस्थानमे समुच्यवत्.
अथ पृथ्वीकाय रचना गुणस्थान २ आदिके उदयप्रकृति ७९. ज्ञाना० ५, दर्शना० ९, वेदनीय २, मिथ्यात्व १, कषाय १६, हास्य आदि ६, नपुंसक १, तिर्यंच-आयु १, तिर्यंचद्विक २, औदारिक १, हुंडक १, तैजस १, कार्मण १, वर्णचतुष्क ४, अपर्याप्त १, अथिर १, अशुभ १, दुर्भग १, अनादेय १, अयश १, बादर १, प्रत्येक १, थिर १, शुभ १, अगुरुलघु १, उपघात १, पराघात १, निर्माण १, उच्छ्वास १, आतप १, उद्योत १, पर्याप्त १, एकेंद्री १, यश १, थावर १, सूक्ष्म १, नीच गोत्र १, अंतराय ५ एवं ७९ है, ४३ नही. १] मि | ७९
मिथ्यात्व १, अपर्याप्त १, आतप १, सूक्ष्म १, पराघात १,
उच्छ्वास १, उद्योत १ एवं ७ विच्छित्ति २ सा ७२
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