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________________ ३५० नवतत्त्वसंग्रहः इति सर्वव्रतानां भङ्गोत्पत्तिकारिका मंतव्या इति श्रावकव्रतानां भङ्गाः समर्थिताः । इति आत्मारामसङ्कलितायां संवरतत्त्वं संपूर्णम् । अथ 'निर्जरा' तत्त्व लिख्यते - अथ 'निर्जरा' शब्दार्थ - 'निर्' अतिशय करके 'ज्' कहतां हानि करे कर्मपुद्गलनी ते 'निर्जरा' कहीये. अथ निर्जराके बारा भेद लिख्यते - अनशन १, ऊनोदरी २, भिक्षाचरी ३, रसपरित्याग ४, कायक्लेश ५, प्रतिसंलीनता ६, प्रायश्चित्त १, विनय २, वैयावृत्त्य ३, स्वाध्याय ४, ध्यान ५, व्युत्सर्ग ६, एवं १२. पहेले ६ भेद बाह्य निर्ज जानने, आगले ६ भेद अभ्यंतर निर्जराके जानने, तपवत्. इस तरे निर्जराके भेदों का विस्तार उववाइ शास्त्रसे जानने. इहां तो किंचित् मात्र ध्यान च्यारका स्वरूप लिख्यते श्रीजिनभद्रगणि क्षमाश्रमणविरचित ध्यानशतकथी । अथ ध्यानस्वरूप दोहरा शुक्ल ध्यान पावक करी, करमेंधन दीये जार, वीर धीर प्रणमुं सदा, भवजल तारनहार १ अथ आर्त्तध्यानके चार भेद कथन. सवईया इकतीसा - द्वेषहीके बस पर अमनोग विसे घर तिनका विजोग चिते फेर मत मिलीयो शूल कुण्ठ तप रोग चाहे इनका विजोग आगेकूं न होय मन औषधिमें भिलियो राग बस इष्ट विशे साता सुष माहि लिये नारी आदि इष्टके संजोग भोग किलियो इंद चंद धरनिंद नरनको इंद थऊं इत्यादि निदान कर आरतमे झिलियो १ अथ स्वामी अने लेश्या कथन. सवईया ३१ सा राग द्वेष मोह भर्यो आरतमे जीव पर्यो बीज भयो जगतरु मन भयो आंध रे किसन कपोत नील लेसा भइ मध मही उतकृष्ट जगनमे एकही न सांध रे आरतके वस पर्यो नर जन्म हार कर्यो चलत दिषाइ हाथ चढ चहूं कांध रे आतम सयाना तोकूं एही दुषदाना जाना दाना मरदाना है तो अब पाल बांध रे २ अथ आर्तके लिंग रोद करे सोग करे गाढ स्वर नाद करे हिरदेकूं कूट मरे इष्टके विजोग ते चित्त मांजि षेद करे हाय हाय साद करे वदन ते लाल गिरे कष्टके संजोग ते निंदे कृत आप पर रिद्धि देष चित ताप चाहे राग फाहे मेरे ऐसा क्यु न जोग ते विसेका पिया सामन आसा षासा भासा वन आलसी विसेमे गृद्ध मूढ मति जोग ते ३ इति आर्तध्यान संपूर्णम्. अथ रौद्र ध्यानके चार भेद निर्घृण चित्त करी जीव वध नीत धरी वेध बंध दाह अंक मारण प्रणाम रे माया झूठ पिशुनता कठन वचन भने एक बृ (ब्रह्म जग मने नाना नही काम रे पंचभूतरूप काया देवकूं कुदेव गाया आतम सरूप भूप नही इन ठाम रे छाना पाप करे लरे दुष्ट परिणाम धरे ठगवासी रीत करे दूजा भेद आम ४
SR No.022331
Book TitleNavtattva Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Sanyamkirtivijay
PublisherSamyagyan Pracharak Samiti
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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