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२३४
१६२ नामकर्मके
बंध भंग
१३९४५
भंग
४
८
२५
६४००
१६
३२००
९ सर्व सं०
१६
९२४० | संख्या
४६३२ | ९६०८
सर्व
१३९२६
८
सर्व
द्रव्यथी
अजीव द्रव्य धर्मास्तिकाय १ एक
८
१६ ८
अधर्मास्तिकाय २ एक
आकाशास्तिकाय एक
३
८ ए
सर्व सं०
संख्या १६
३२
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८ सर्व म् १
व
क्षेत्रथी
लोकप्रमाण
लोकप्रमाण
लोकालोक
प्रमाण
१
१६३ नामकर्मके
७७०४ ३४५६ ३४५६७५९२ ४४३ १५८ (१४८१) ७२ ७२ उदयभंग ७७६८ ४०९७ ९ २७०१ १४८ १५८ १४८ ७२ (७७९१) ७७६८ ४०९७ सर्व ६९ सर्व सर्व (१४८१) ७२ (७६०२१) ११६५० ३४६५ १०३६२ ५९१ ३५४४सर्व
३१६ १४६ ७२
१४८ ७२
सर्व सर्व
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सर्व १
अथ अजीवतत्त्वसंग्रह लिख्यते
(८०) भगवती
काली अनादि अनंत
(५९२१) ३६०
५८८
अनादि अनंत
अनादि अनंत
१
१
०००००
-0
नवतत्त्वसंग्रहः
०
भावथी
वर्ण नही, गंध,
रस, स्पर्श नही,
अरूपी
वर्ण आदि पांचो
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०
००
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०
०
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०
०
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७७७३
७७७३
सर्व
(४६३८८२)
४२३३०
६०
इन दोनो यंत्रका विस्तार बहुत है, इस वास्ते भांगा लिख्या नही, जोकर भांगे विचारणे अरु सीखनेकी इच्छा होइ तो सप्ततिसूत्र ( गा० २६, २९) नी वृत्ति अवलोकनीयं इति अलम्. इति नवतत्त्वसंग्रहे आत्मारामसंकलता ( ना ? ) यां प्रथमजीवप्रभेद संपूर्णम्.
०
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७२ ७२ २४ १ १
००
१ १
६ स
१३
१ र्व
१२ २
२५
१
सर्व
चलनसहाय
स्थितिसहाय
नही, अरूपी
वर्ण आदि ५ नही, अवगाहसहाय
अरूपी है