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________________ नवतत्त्वसंग्रहः २०२ १, आहारक संघातन १, आहारक बंधन १, ए ४ रहित कीयां ८९ की सत्ता. तीर्थंकर टले ८८. नरक -गति १, नरक-आनुपूर्वी १, ए २ टले ८६. देव - गति १, देव - आनुपूर्वी १, वैक्रिय शरीर वैक्रिय अंगोपांग १, वैक्रिय संघातन १, वैक्रिय बंधन १, एवं ६ टले ८०. नरकगति योग्य ८० मे ६ घालीये ८६ कीजे - नरक -गति १, नरक-अ 5- आनुपूर्वी, वैक्रिय चतुष्क ४, एवं ८६ नी सत्ता, अथवा ८० मे ६ घाले - देव - गति १, देव - आनुपूर्वी १, वैक्रिय ४, एवं ६ घाले ८६ देवगति योग्य जाननी. तथा ८० मे मनुष्य - गति १, मनुष्य - आनुपूर्वी १, ए २ टले ७८ नी सत्ता. ए पूर्वोक्त सात ठाम संसारी जीवने न हूइ पिण [ क्षपक श्रेणे नही] क्षपक श्रेणे ए सत्ता जाणवी. ९३ माहेथी १३ रहित कीजे, ते नरकद्विक २, तिर्यंचद्विक २, एकेन्द्रिय आदि चार जाति ४, स्थावर १, आतप १, उद्योत १, सूक्ष्म १, साधारण १, एवं १३ टली ८० ए सत्ता क्षपक श्रेणे. तीर्थंकर टाले ७९.८९ मे तेरा एही टले ७६ की सत्ता. क्षपके ८८ माहेथी तेरें टले ७५ की सत्ता क्षपकने. हिवै नवनी सत्ता - मनुष्यगति १, पंचेन्द्रिय १, त्रस १, बादर १, पर्याप्त १, सुभग १, आदेय १, यश १, तीर्थंकर १, एवं ९. अयोगी गुणस्थानके छेहले समय तीर्थंकरने ए सत्ता, सामान्य केवलीने तीर्थंकरनाम विना ८ नी सत्ता. गुणस्थान उपर सुगम है. ५५ ५६ ५७ ५८ गोत्रका बंध- उं वा उं वा उं उं उं उं उं स्थान १ नी नी गो० उदय स्थान १ गो० सत्ता स्थान २ अंतरायका बंधस्थान १ ज्ञानावरणीय भंग २ उं वा → नी उं १ नी २ ५ ६२ दर्शनावरणीयके भंग ११ ए T T ގ ५९ अं० उदयस्थान १ ५ ५ ५ ६० अं० सत्तास्थान १ ५ ६१ १ २ एवं ގ to व ގ र् म् m 20 ↑ १ ३ २ ४ ४ ގ ३ 4. इ ए ގ उं al. व ५ ५ ५ ५ ५ ५ ५ ५ ५ ५ ५ ५ ५ उं उं हू ন १/प १/ प १ / प १/५ १/प १/५ १/५ १/ १२ / प उं उं उं उं ގ ގ ज् ज् ए - ১০ Ju ३ ३ ३ ३ ५ ४ ४ ४ al. ६ ގ ५ ५ ० ४ ६ ६ ७ sw9 o ५ ५ १/प १ or 16 o o a4. ० 6 ५ O १ ज्ञानावरणीयके भंग २. बंध ५ का उदय ५, सत्ता पांच, १ बंध नही, उदय ५, सत्ता ५, एवं २ भंग. or ov al. ८ १० ९ ↑ ११ ० o al. o ނ ० o | ° ० o ०००० ०००० o o
SR No.022331
Book TitleNavtattva Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Sanyamkirtivijay
PublisherSamyagyan Pracharak Samiti
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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