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________________ २०० नवतत्त्वसंग्रहः पराघात १, उच्छ्वास १, प्रशस्त वा अप्रशस्त खगति १, सुस्वर तथा (वा) दुःस्वर १, ए चार प्रक्षेपे ३० होइ है. अतीर्थंकर केवली सयोगी पहिले आठमे समये औदारिक काययोगे वर्ततां उदय जानना. ३० मे तीर्थंकरनाम प्रक्षेपे ३१. ए सयोगी केवली तीर्थंकर औदारिक योगे वर्ततां हूइ. सयोगी केवली वचनयोग रूंधे तदा ३० का उदय. उच्छ्वास रूंधे तद २९ का उदय. हिवै सामान्य केवलीने पाछे ३० का उदय कह्या है तेमेसूं वचनयोग रूंधे २९, उच्छ्वास रूंधे २८. हिवै ९ का उदय कहीये है-मनुष्यगति १, पंचेन्द्रिय १, त्रस १, बादर १, पर्याप्त १, सुभग १, आदेय १, यश १, तीर्थंकर १, एवं ९. चौदमेके छेहले समय तीर्थंकरने ए उदयस्थान, सामान्य केवलीने तीर्थंकरनाम रहित ८ का उदय. हिवै देवताने उदयस्थान ६, ते ए-२१।२५।२७।२८। २९।३०. देव-गति १, देव-आनुपूर्वी १, पंचेन्द्रिय १, त्रस १, बादर १, पर्याप्त १, सुभग अथवा दुर्भग १, आदेय अथवा अनादेय १, यश वा अयश १, ए नव अने बारां ध्रुवोदयी, एवं २१. ए विग्रहगतिमे २१ का उदय. ____ अथ अपर्याप्तपणे शरीर करतां वैक्रियद्विक २, उपघात १, प्रत्येक १, समचतुरस्त्र संस्थान १, ए ५ प्रक्षेपे, देव-आनुपूर्वी काढे २५ का उदय. शरीरपर्याप्ति पूरी हुयां पराघात १, प्रशस्त गति १, ए २ घाले २७. इन २७ मे उच्छ्वास घाले २८. जो कर उच्छ्वासनो उदय नही तो उद्द्योत घाले २८. भाषापर्याप्ति पूरी हुयां स्वर घाले २९. जोकर स्वरनो उद्द्योत नही हूया तो उद्द्योत घाले २९. देवताने दुःस्वरनो उदय नही है. उत्तर वैक्रिय करतां देवताके उद्द्योत लाभे, २८ मे स्वर सहित २९, उद्योत घाले ३०. हिवै नारकीने उदयस्थान ५, ते यथा२१।२५।२७।२८।२९. नरक-गति १, नरक-आनुपूर्वी १, पंचेन्द्रिय १, त्रस १, बादर १, पर्याप्त १, दुर्भग १, अनादेय १, अयश १, एवं ९, अने बारां ध्रुवोदयी, एवं २१. अपर्याप्तपणे शरीरपर्या(प्ति) करतां वैक्रिय शरीर १, वैक्रिय अंगोपांग १, हुंड संस्थान १, उपघात १, प्रत्येक १, ए ५ प्रक्षेपे, नरक-आनुपूर्वी १ काढे २५. पराघात १, अप्रशस्त खगति १ घाले २७, उच्छ्वास घाले २८. भाषापर्याप्ति पूरी हुया दुःस्वर घाले २९. गुणस्थान पर एकेन्द्रिय आदि देइ विचार लेना. एह उदय अधिकार गहन है सो भूल चूक सप्ततिसूत्रसे शुद्ध कर लेना. मेरी समजमे जितना आया है सोइ तितना ही लिख्या है. शुद्ध अशुद्ध शोध लेना. ५४/ नामकर्मके | ९२८९ / ९२ | ९२ ९३ / ९३ | ९३ ९३ / ९३ ९३ / ९२ ९३ ९३ ८० ८० सत्तास्थान १२ / ८८८६ / ८८ ८८ ९२ / ९२ | ९२ | ९२ | ९२ / ८९ | ८९/८९८९| ८९| ८९८० ७९८९ | 35 ८०९७८ नामकर्मके सत्तास्थान १२, ते ए-९३।९२१८९।८८८६८०७९।७८७६।७५।९।८, एवं १२. सर्व सत्ता तो ९३. तीर्थंकर टले ९२ तथा ९३ माहेथी आहारक शरीर १ आहारक अंगोपांग १,
SR No.022331
Book TitleNavtattva Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Sanyamkirtivijay
PublisherSamyagyan Pracharak Samiti
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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