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युक्त
जघन्य
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नवतत्त्वसंग्रहः .. अथ प्रकारांतरसुं श्रेणि करनेकी आम्नाय-जघन्य प्रतर असंख्यातकुं दुगणा करे, उस पर पल्योपमकी वर्गशलाकाकू भाग दीजे. जो हाथ आवे उसकू घनांगुलकी वर्गशलाकामे भेल दीजै सो लोकाकाशकी श्रेणिकी वर्गशलाका हूई. इसकी असत् कल्पनाका (५८) यंत्रसे स्वरूप जाननाजघन्य प्रतर | दूणा | पल्यकी वर्ग-| भाग देतें | घनांगुल | भेला कीये
छठ्ठा वर्ग असंख्य शलाका | हाथ लगे | वर्गशलाका
७९२२८१६५१४९६४३३७
५९३५४३९५०३३६ __ (५९) श्रीअनुयोगद्वार (सू० १४६) से संख्य असंख्य अनंत स्वरूपं संख्यात
जघन्य मध्यम
उत्कृष्ट परित्त जघन्य मध्यम
उत्कृष्ट मध्यम
उत्कृष्ट असंख्य जघन्य मध्यम
उत्कृष्ट परित्त जघन्य मध्यम
उत्कृष्ट युक्त जघन्य मध्यम
उत्कृष्ट _अनंत जघन्य मध्यम
उत्कृष्ट एकका वर्ग भी एक तथा घन भी एक. गुणाकार एके से जिस राशिकू कीजीये सो जौं की त्यौं रहै तथा एकसूं भाग जिस राशिकू दीजीये सो वी जौं की त्यौं रहे. तिस कारणसे एका गिणतीमे नही. दूयेसे गिणती. सो दूया 'जघन्य संख्याता' कहीये. इसथी आगे ३।४।५ यावत् उत्कृष्ट संख्यातेमेसुं एक ऊणा होइ तहा ताइ सर्व 'मध्यम संख्याता' जानना. अब उत्कृष्ट संख्याता लिखीये है 'विस्तरात्
सरसो १, यवमे ८, अंगुलमे ६४, हाथमे १५३६, दंडमे ६१४४, कोशमे १२२८८०००, सूची-योजनमे ४९१५२०००, प्रतर-योजनमे २४१५९१९१०४००००००, घन-योजनमे ११८७४७२५५७९९८०८०००००००००.
विष्कंभ एक लाख योजन, गभीरपणा १०००, परिधि ३१६२२७ योजन झझेरी वेदका ८ योजन. शिखा २८७४८ योजनकी.
4.
१ अनवस्थित पाला. २ शलाका पाला. ३ प्रतिशलाका पाला. ४ महाशलाका पाला.
१. विस्तारथी।