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नवतत्त्वसंग्रहः ए छ चोक चौवीस अने चार व्यंजनावग्रह एवं २८ भेद श्रुतनिश्रित मतिज्ञानके है। अने अश्रुतनिश्रित मतिना भेद औत्पत्तिकी आदि ४ बुद्धि सो तिनका विस्तार नन्दीसे ज्ञेयं । तथा श्रुतनिश्रित मतिज्ञानके ३३६ भेद है सो लिख्यते-१. बहुग्राही, २. अबहुग्राही, ३. बहुविधग्राही, ४. अबहुविधग्राही, ५. क्षिप्रग्राही, ६. अक्षिप्रग्राही, ७. अनिश्रित, ८. निश्रित, ९. असंदिग्ध, १०. संदिग्ध, ११. ध्रुव, १२. अध्रुव । इनका अर्थ-कोइ एक क्षयोपशमना विचित्रपणाथी अवग्रह आदिके करी एक वेला बजाया जो भेरी, शंख प्रमुख तेहना शब्द न्यारा न्यारा जाणे ते 'बहुग्राही' अने एक अव्यक्तपणे तुर्यनी ही ज ध्वनि जाणे ते 'अबहुग्राही.' अने जे वली स्त्री प्रमुखनी बजाया मधुर आदि घणा पर्याये करी शंख प्रमुखनी ध्वनि जाणे ते 'बहुविधग्राही'. तेहथी एक विपर्यय जाणे ते 'अबहुविधग्राही'. जे शब्द आदि कह्या ते क्षिप्रउतावला जाणे ते 'क्षिप्रग्राही.' अने एक वली विमासीने मोडा जाणे ते 'अक्षिप्रग्राही.' एक लिंगे जाणे ते 'निश्रित,' ध्वजा देखी देहरा जाणे । विपर्यय जाणे 'अनिश्रित.' जे संशय विना जाणे ते 'असंदिग्ध.' संशय सहित जाणे ते 'संदिग्ध.' अने जे एक वारनो जाण्यो सदा जाणे पिण कालांतरे परना उपदेशनी वांछा न करे ते 'ध्रुव' कहीये । विपर्यय ‘अध्रुव.' एह बारे भेदसू पहिले २८ भेदकू गुणीये तो ३३६ मतिज्ञानना भेद होय है।
१. ईहा, २. अपोहा, ३. विमर्शा, ४. मार्गणा, ५. गवेषणा, ६. संज्ञा, ७. स्मृति, ८. मति, ९. प्रज्ञा–मतिके एकार्थ(क) नाम । एह नव मतिके नाम है।
अथ मतिज्ञान नव द्वार करी निरूपण करीये है
१. संत० (सत्०) छता पद प्ररूपणा–मतिज्ञान किहां किहां लाभे ? २. द्रव्यप्रमाण-एक कालसे कितने जीव मतिज्ञानवंत लाभे? ३. क्षेत्र-मतिज्ञानवंत कितने क्षेत्रमें है ? ४. स्पर्शनामतिज्ञानवान् कितना क्षेत्र स्पर्खे है ? ५ काल-मतिज्ञान कितना काल रहै है ? ६. अंतरमतिनो अंतर । ७. भाग-मतिज्ञानी अन्यज्ञानीयोके कितमे(ने ?) भाग ? ८. भाव-मतिज्ञान षट भावमें कौन से भावे है ? ९. अल्पबहुत्व-मतिज्ञान पूर्वप्रतिपन्नाप्रतिपद्यमान, इनमें घणे कौन से अने 'स्तोक कौन से ?
(३६) छतापद द्वार वीसे भेदे यंत्र सत् पद प्ररूपणा | मति है वा पृथ्वी अप् तेज | नास्ति | जहां तीनो योग | अस्ति २० द्वारे । नहीं? वायु वनस्पति
एकठेमें ४ चारो गति में १ | है त्रसकाय में ३ | अस्ति | स्त्री पुरुष नपुंसक | अस्ति
वेदे ५ एकेंद्री बेंद्री तेंद्री नही एकांत काय | नास्ति अनंतानुबंधी | नही चौरेंद्री में प्राये
योगे
चौकडी में पंद्री में २ | अस्ति । एकांत वचने काये | नास्ति
१. अल्प।