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ए स्त्रीओनुं अने राज्यकार्य क एमंत्रीओनुं काम छे, माटे ए त्रणे वातोने दररोज विचारता रहेवी जोइए ॥९॥ए पछी राजाए प्रसन्नचित्त थइने हालिने कर्तुं केः-संकराट नामनो उत्तम मुलक छे ते तमने आपुं छु तेनो स्वीकार करो ॥ १०॥ हे भद्र! ए मुलक कल्पवृक्ष समान मनवांछीत फळने आपवावाळो बीजा पांचसो गाम सहित बहु सारो छे, ते तमे स्विकार करो ॥ ११ ॥ आ वचन सांभळीने हालीए राजाने कह्यु के हे देव! हुं तो एकलो छु, बह गाम लइने शुं करीश? ॥ १२ ॥ एतो तेनेज ग्रहण करवा योग्य छे के जेने लश्कर अने प्रबंध करवावाळा हजारो सेवक होय ॥ १३ ॥ त्यारे राजाए कह्यु के हे भद्र! मनोहर गामोमां हमेशां रहेवाथी तेमां पोतानी मेळे प्रतिपालन करवावाळा सेवको थई जशे, केमके-॥१४ ॥ गामोथी धननी प्राप्ति थाय छे, धनथी नोकर चाकरोनो समूह थाय छे, अने नोकर चाकर राजानी सेवा करे छे. द्रव्यथी उत्तम बीजी कोइ वस्तु नथी. ॥ १५ ॥ द्रव्यधीज कुलीन पंडीत मान्य शूर न्यायविशारद चतुर धर्मात्मा अने प्रिय थाय छे ॥ १६ ॥ योगी; वाग्मी, दक्ष, दानो शास्त्रपरायण ए सधळा खुशामतीआ थइने धनाढय नी सेवा करछे ॥ १७ ॥ गळी गया छे हाथ पग. अने नाक जेना एवो कोढीओ होय अने ते जो धनवान होय तो तेंने नव योवन स्त्री पण गाढ आलिंगन करीने सेवन करे छे॥ १८ ॥ जेना घरमां द्रव्य छे, तेने सघळा माणसो ताबदार प्रियकर अने वशीभूत थइ जाय छे ॥ १९ ॥ जेना घरमां पैसो छे, ते जो मूर्ख होय तोपण तेनी मोटा मोटा पांडतो प्रशंसा करे छे, जोते कायर होय तोपण तेनी मोटा मोटा योद्धा सेवा करवा लागी जाय छे, जो ते पापी होय तोपण