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________________ 198 पुरुष बन्ने लोकमां सुखनी इच्छा राखे छे, तेमणे मान छोडीने भजाम्युं कार्य पूछीने विधिथी साधन कर मोइए ॥ ९३ ॥ जे दुर्बुद्धि राग द्वेष मोह काम क्रोध मान लोभ अने मूढताने वश थइ हिताहितनो विचार करतो नथी ते पोते पोताना मस्तक उपर वज्रपात करे छे ॥ ९४ ॥ जे दुर्विदग्ध ( मिथ्या ज्ञानथीज पोताने पंडित समजवाबाळी ) पुरुष दुर्भेव गर्वरुपी पहाडना शिखरपर चढाने कोइ बीजाने पूछतो नधी, ते तोमर बादशाहनी माफक हाथमां आवेला पवित्र रत्नोनो नाश करे छे ॥ ९९ ॥ जे विनयवान पुरुष हमेशां पूछीने, पोताना मनमां सारीरी विचार करीने, याद करीने युक्त अयुक्त कार्य करे छे, ते विस्तार यशवालो मनुष्य, मनुष्य अने देवगतिनुं सुख मेळवी केवळ ज्ञानतो धारक थइने आपदारहित निर्वाण पद पामे छे ॥ ९६ ॥ आ प्रमाणे अमितगति आचार्य कृत 'धर्म परिक्षा' नामना संस्कृत ग्रंथनी गुजराती भाषा टीकामां सातमुं प्रकरण पूर्ण थयुं ॥ ७ ॥ <
SR No.022328
Book TitleDharmpariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarlal Karsandas Kapadia
PublisherMulchand Karsandas Kapadia
Publication Year1910
Total Pages244
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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