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छोकराने विनयवान अने वेदोना अर्थ ग्रहण करवामां चतुर जोईने ते भूतमतिए पोताने घेर शिष्य बनावीने राखी लीधो, जे तेणे मूर्तिमान अनर्थज जाणे ग्रहण कंरी लीधो ॥ ९ ॥ ए ब्राह्मणना छोकराने जोतांज यज्ञा तो विह्वल थई गई अने जे प्रमाणे घणो भार लाधेली गाडी एकदम अटकी जाय छे, ते प्रमाणे यज्ञानी आंखोनी द्रष्टि बीजा पदार्थोथी हठीने तेने जोवामाज स्थिर थई गई ॥ १० ॥ रती अने कामनी माफक ते बन्नेने हमेशां एकत्र रहेवारुपी जलथी सींचेलं इष्टफलदायक स्नहरुपी वृक्ष पण दररोज वधवा लाग्युं ॥ ११ ॥ दरिद्रनी सभा, सेवकनी प्रतिकूलता अने वृद्ध पुरुषने तरुण भार्या, ए त्रण कुलनो क्षय करवानुं कारण छे ॥ १२ ॥ परपुरुषमां आशक्त थयेली स्त्री सघळा दोष करे छे जे उचितज छे, वज्राग्निनी ज्वाला कोने आतापकारी होती नथी ?॥ १३ ॥ जे पुरुष स्त्रीने पोताना घरमां स्वतंत्र अने निर्गल करे छे ते साक्षात धान्यमां बळती अग्निनी ज्वालाने होलवतो नथी, कमेके ॥ १४ ॥ संभाळ न लीधेली स्त्री उदयने प्राप्त थईने वधेला असाध्य रोगनी माफक प्राणोनो क्षय करे छे ॥ १५ ॥ ए स्त्री सघळाने तृप्त करे छे, तथा सेवन करे छे, ए कारणथी एनुं नाम योषा छे. अने क्रोध करवावाळी छे, ए कारणथी एनुं नाम भामिनी छे ॥ १६ ॥ अने पोताना दोषोने ढांकी ले छे, ए कारणथी विद्वजन एने स्त्री कहे छे. एनाथी चित्त विलीन थई जाय छे, ए कारणथी एने विलया कहे छे ॥ १७ ॥ ए पापकार्योमां रमे छे, ए कारणथी एने रमणी कहे छे, ए कु एटले सघळी पृथ्विने मारे छे, ए कारणथी एने कुमारी कहे छे ॥ १८ ॥ ए लोकोने बल रहित करी दे छे ए कारणथी एने