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धुमाडो आकाश मार्गमा फेलाई रहेलो छे ॥ २१ ॥ ज्यां आगळ बहेरुं कर्यु छ आकाश जेणे एवी चार वेदनी ध्वनि सांभळीने मोरो मेघनी गर्जना माफक शंका करीने नृत्य करी रह्या छे ॥२२॥ तथा वशिष्ट, व्यास, वाल्मकिी, मनु, ब्रह्मा वगेरेए रचेली वेदना अर्थने प्रतिपादन करवावाळी स्मृतिओ संभळाय. छे ॥ २३ ॥ ज्यां आगळ चारे तरफ सरस्वातना पुत्रनी माफक बगलमां पुस्तक लईने घणा चतुर विद्यार्थीओ जता नजरे पडे छ ॥ २४ ॥ ते नगरमां परस्पर मर्मभेदी वचनोद्वारा वाद करता वादी एवा शोभे छे के जाणे मर्मभेदी बाणोद्वारा क्षोभरहित योद्धाज युद्ध करी रह्या छे ॥ २५ ॥ जे प्रमाणे भमराना समूहथी सरोवर शोभे छे ते प्रमाणे ते नगरना पंडित माणसो होशीयार शिष्योना समूहथी मनोहर देखाय छे. ॥ २६ ॥ अने गंगाना किनाराउपर चारे तरफ ध्यानमां निमग्न माथु मुंडेला भद्र सन्यासीज सन्यासी नजरे पडे छे ॥ २७ ॥ ज्यां आगळ शास्त्रार्थनो निश्चय करती वादरुपी नदीनो शब्द सांभळीने वाद करवाने आवेला वादीगण जलदी नासी जाय छे ॥ २८ ॥ आग्नहोत्रादि कर्म करता अनेक विद्वान ब्राह्मण त्यां रहे छे ते जाणे मूर्तिमन्त वेदज छे ॥ २९ ॥ तथा सघळा शास्त्रोनो विचार करवावाळा मीमांसक द्विज दररोज मीमांसा ( वेदान्त ) शास्त्रना विचार करी रह्या छे ते जाणे सरस्वतीना विभ्रम कहिए विलासज छे ॥ ३० ॥ तथा दुःखरुपी काष्टने आग्निनीसमान जे धर्म तेने प्रकाश करवाने माटे हजारो ब्राह्मण १८ पुराणोनां व्याख्यानो करी रह्या छे ॥ ३१ ॥ ते नगर जग्याए जग्याए तर्क, [ न्याय ] व्याकरण, काव्य, नीतिशास्त्रनुं व्याख्यान करवावाळा विद्वानोवडे सरस्वतिना मंदिरनी माफक देखाय छे ॥ ३२ ॥ माटे हे भाई, एं सघळु चारे तरफ जोतां