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प्रस्तावना.
ज्यारथी मुनि भट्टारकोनो अभाव थतो गयो त्यारथी दिगंबर जैन धर्म संबंधीनुं ज्ञान मेळववानुं साधन मात्र शास्त्रज थइ पडयुं छे, पण अनेक लिखित धर्मशास्त्रो अव्यवस्थित अने अशुद्ध होवाथी सर्वेने धर्मशास्त्रोनो लाभ लेवाने सुभीता पडती नथी. वळी हिंदी तथा मराठी भाषामां भनेक शास्त्रो मुळ अनुवाद साये छपाईने बहार पडयां छे अने वधु बहार पडतांज जाय छे, मेथी उत्तर अने दक्षिणना भाईओने तो धर्म संबंधी ज्ञाननो लाभ मळयोज जाय छे, पण आज सुधीमां गुजरातमां एवो एक पण धार्मिक ग्रंथ गुजराती भाषामां बहार पडयो नथी के अधी जेनधर्मर्नु रहस्य अने अन्य धर्मनुं पोकळपणुं गुजरातना भाईओना जाणवामां आवे. केटलोक वखत थयां अमोने एवो विचार उत्पन्न थयो के, जो गुजरातना भाईओ माटे कोई महान् शास्त्रीय ग्रंथ गुजराती अनुवाद करीने प्रकट करीए तो गुजरातने घणो लाभ थाय, पण गुजरातमा धर्मरुची ओछी होवाथी एवो पण विचार उत्पन्न थयो के जो प्रथम कोईपण रीते विना मुल्ये आवो ग्रंथ आपत्रामां आवे तोज गुजरातना भाइओ एनो सहेलाइथी लाभ लई शके, आवो विचार उत्पन्न थवाना समममा श्रीमान् दानवीर जैनकुलभूषण शेठ माणेकचंद हीराचंदजी जे. पी. ना स्वर्गवासी भाणेज शेठ चुनीलाल झवेरचंदनां विधवा बाई गडावबाईने कोइ धार्मिक ग्रंथ गुजराती भाषामां तैयार करी स्वर्गवासी शेठ चुनीलाल झवरचंदना स्मार्थे प्रकट करवानो विचार थयो अने