SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 240
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२० शास्त्रने जाणवावाळा शोध करीने ग्रहण करो. शुं ऊंची बुद्धिवाळा विद्वान सारासार समजीने खोटाने छोडी खरानजे ग्रहण करता नथी ? ॥ ७ ॥ प्राचीन कविताज सुखदायक छे नवीन कविता सुखदायक नथी बुद्धिमानोए आ प्रमाणे कदी नहि समजबुं जोइए, वृक्षोने दर वर्षे नवां नवां फल आवे छे तो शुं ते आगला वर्षानां फल जेवां श्रेष्ठ अथवा मिठां थतां नथी ? ॥ ८ ॥ तथा कोई कहे के पुराणोने छोडीने पुराणोथी उत्पन्न थयलो आ ग्रंथ ग्रहण करवामां आवी शकतो नथी माटे आ कहे पण ठीक नथी, केमके सुवर्णमाय पत्थरमांथी नीकळेलु सोनुं शुं महामूल्यथी वेचातुं नथी ? ॥ ९ ॥ में आ पुस्तकमां जे अन्यमतना शास्त्रोनो विचार कर्यो छे, ते बुद्धिनो गर्व प्रकट करीने अथवा पक्षपातथी कर्यो नथी, परंतु जे धर्म शिवसुखने आपवावाळो छे, ते धर्मनी मात्र परिक्षा करवाने माटेज आ परिश्रम करवामां आव्यो छे ॥ १० ॥ विष्णु, महादेव वगेरेए तो मारुं कई लीधुं नथी अने जिन्द्र भगवाने मने कई आपी दीधुं नथी, जे हुं विष्णु वगेरेनुं खंडन करीने जिनेंद्रनी स्तुति करु. केमके विद्वज्जन निरर्थक क्रिया करता नथी ।। ११ ॥ मारूं तो मात्र एमज कहेवू छे के जे सत्पुरुष छे ते कुगतिनी प्रवृति करवावाळा मार्गने (धर्मने ) छोडीने सुगतिमां लई जवाबाळा धर्मनो आश्रय करे, जेथी नारकादि गतिमां जवावाळाने सघळा अंगने आतापकारी महादुःख पडे नहि ॥ १२ ॥ जे सारी रीते निवेदन करेला हितने ग्रहण करता ना, त अवश्य आगामी कालमा अनेक प्रकारनां दुःख भोगवशे. अने जे निवारण करवाची कुमार्गमा रहेता नथी, ते भविश्यमा दुःख पामशे नहि ॥ १३ ॥ जे प्रमाणे कडवू
SR No.022328
Book TitleDharmpariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarlal Karsandas Kapadia
PublisherMulchand Karsandas Kapadia
Publication Year1910
Total Pages244
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy