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________________ २१७ थयो । ८२ ॥ ए पछी पवनवेग मुनि महाराजने नमस्कारपूर्वक कहेवा लाग्यो के, हे मुनि ! आजे मारा समान कोईपण भाग्यवान नथी, केमके हुं नर्करूपी कूत्रामां पडतां आपना वचनरूपी आलंबनने प्राप्त थयो छं ॥ ८३ ॥ जे माणस आपनां वचनाने सांभळे छे, ते पण मनोवांछित फलने प्राप्त थाय छे तो जे एकचित्त थई आपना वचन अनुसार चाले छे, तेनुं फल के उत्तम थशे ते कहेवाने कोइ समर्थ नथां ॥ ८४ ॥ जे मनुष्य आपनां वचनाने सांभळांने कईपण करता नथी, ते खरेखर मनुष्य नथी, केमके रत्नभूमिमां प्राप्त थईने पशुज खाली हाथ आवे छे, मनुष्य कदापि खाली हाथ आवतो नथी ।। ८५ ।। आ प्रमाणे पवनवेग निर्दोष बचनो कहांने व्रतसमितिवाळा मुनिसहित केवली भगवानने प्रांति - पूर्वक नमस्कार कराने पोताना मित्र मनोवेग सहित विजयार्द्ध पर्वतपर पोताने घेर गयो || ८६ ॥ पवनवेगने जैन धर्मावलंबी जोइन मनोवेग बहुज हर्षित थयो, जे नातिज छे के पोतानो करेलो परिश्रम सफल थवाथी एवो कोण पुरुष छे के जेना हृदयमां हर्ष न थाय ? ॥ ८७ ॥ ए पछी मनोहर आभूषणांना धारक ते बन्ने मित्र चार प्रकारना पवित्र श्रावकधर्म ने हर्ष साथ धारण कराने परस्पर महाप्रीतिरूपी बंधनथी पोतपोताना चित्तने बांधला सुखथी पोतानो समय गाळवा लाग्या ॥ ८८ ॥| अने अनेक आभूषण पहेरेला स्फुरायमान रत्नोना समूहथी शोभित पोताना विमानमां बेसाने देवमनुष्योना राजा इंद्र अने चक्रवर्त्ति ओबडे पूजनीय मनुष्यक्षेत्रांना ( अढाई द्विपना ) कृत्रिम अकृत्रिम सघळां जिनमंदिरोमां स्थित जिनप्रतिमाओनी दररोज भक्तिपूजा वंदना करीने रहेवा लाग्या. ते ठीकज छे के, शुद्धज्ञानना धारक सत्पुरुष पो
SR No.022328
Book TitleDharmpariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarlal Karsandas Kapadia
PublisherMulchand Karsandas Kapadia
Publication Year1910
Total Pages244
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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