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बेटी समान जोत्री जोइए ॥ ५७ ॥ परस्त्री अत्यंत स्नेहयुक्त होवा छतां पण दुख आपवावाळी छे, सुंदर होवा छतां पण पापरूपी मेलने करनारी छे, रसनी आधार होवा छतां पण तृष्णाने वधारनारी छे, जडता सहित होवा छतां पण आताप वधारनारी छे, पोतानुं सर्वस्त्र आपवा छतां पण द्रव्यने हरनारी छे, आ प्रमाणे विरुद्धाचारथी चालवावाळी जे परस्त्री तेनो दूरथीज त्याग करवो जोईए ॥ ५८-५९ ।। जोके स्वस्त्री अने परस्त्रीना सेवनमां कंईपण विशेष नथी, परंतु परस्त्री सेवन करनारा तो नर्कमां जाय छे अने स्वदार संतोषी स्वर्गमा जाय छे. एनुं कारण एज छे के, स्वस्त्रीनी अपेक्षाथी परस्त्री सेवनमां अनुराग वधारे थाय छे अने परद्रव्यमां राग करवोज दुःखनुं मुख्य कारण छे ॥ ६० ॥ जे स्त्री पोताना पतिने छोडीने निर्लज थई परपुरुषनी साथे रमण करे छे, ते परस्त्रीनो केवी रीते विश्वास थइ शके ? ॥ ६१ ॥ रमणीय स्त्री जोवाथी सुख न थईमे आकुलता अने नर्कमां लई जनारा घोर पाप थवा सिवाय कंईपण प्राप्ति थती नथी ॥ ६२ ॥ जेना संगमात्रथी उभय लोक संबंधी हानि थाय छे, एवी परस्त्रीने लोक स्वदारसंतोषता छोडीने शामाटे सेवन करे छे ? ॥ ६३ ॥ जे पुरुष कामरूप अग्निथी संतप्त परस्त्री- सेवन करे छे, तेओने नर्कमां साक्षात् अग्मिथी लाल करेली लोहमयी स्त्री साथे वळ्गाडवामां आवे छे ।। ६४॥ एबुं जाणीने विद्वानोए यमराजानी द्रष्टि समान प्राणसंहार करनारी परस्त्रीने छोडी देवी जोइए ॥ ६५ ॥ ___पांचमुंः–जे प्रमाणे घणा तापवाळी अग्नि जळथी बुजावी देवामां आवे छे, ते प्रमाणे आपणो वधी गयेलो लोभ संतोष करीने शमावी