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तो बीजाने भोजन कराववाथी तृप्त थई जाय छे, तो मारुं शरिर पासे रहेता पण मारी तृप्ति नहि थाय ? ॥ ९२ ॥ तेन प्रमाणे नर्कना भयथी भयभीत थवा वगर मिथ्यात्वरूपी अंधकारथी आंधळा थईने न्यासादिके धर्ममां प्रवीण महान् पूजनीक पुराण पुरुषांना विषयमां कईनुं कई बकी दीघेलुं छे ॥ ९३ ॥ जेमके - दुर्योधन जिनेंद्र भगवानना चरणोनो भ्रमर धन्यपुरुष चर्मशरीरी एटले तेज भवथा मोक्ष पदने प्राप्त थवावालो हतो, ते युद्धमां भीमवढे मार्यो गयो. आ प्रमाणे व्यासे कयुं छे ते सर्वथा असत्य छे ॥ ९४ ॥ अने मुक्तिरुपी स्त्रीने आलिंगन करवानी छे इच्छा जेने, मोक्षगामी कुंभकर्ण इन्द्रजीतादि विद्याधर पुरुष रत्नोने व्यासे निंदनीय मांस भक्षण करवावाळा दुष्ट अने मनुष्यने खावावाळा राक्षस बतावेला छे, ते मोटा अन्याय कर्यो छे ॥ ९५ || जे वालिमहात्मा कर्मबंधनो नाश करीने सिद्धपदने प्राप्त थया अर्थात मोक्षमां गया, तेमने वाल्मीकिए रामथी मार्या गया एम लखेलुं छे ते सर्वथा असत्य छे ॥ ९६ ॥ एक वखत कैलास पर्वत उपर वालिमुनि ध्यानमां बेठेला होवाना कारणथी कैलास उपरथी जं रावणनुं विमान अटकी गयुं. जेथी गुस्से थईने रावणे पोताना विद्याबलथी शरीरने मोटुं करीने कैलास पर्वतने उपाडीने समुद्रमां नाखवानी तैयारी करी ॥ ९७ ॥ कैलास पर्वतना जैनमंदिरोनी रक्षा करवाने माटे वालिमुनिराजे पोताना पगना अंगूठाथी कैलासने दबावी दीधो, त्यारे लंकाधिपति रावण पगोने संकोचीने बहु रडयो ॥ ९८ ॥ आ प्रमाणे वालिमुनिद्वारा कैलासनी रक्षा थई, जे लोकप्रसिद्ध छे. परंतु व्यासादिक कपि छे, ते रुद्रने माटे आवी कथा जोडे छे. क्या ए मुनिसुव्रत भगवानना समयमां थवावाळो रावण अने क्यां वर्धमा