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________________ १६० फलनी सिद्धि नथी, केमके रेतीने पीलवाथी कदी तेल नीकळवानुं नथी ॥ १० ॥ हे मित्र ! वांदराओथी राक्षस कदापि मारी शकाता नथी, केमके -क्यां ए अष्ट महाऋधिना धारक राक्षस अने क्यां ए ज्ञानरहित पशु ! ॥ ११ ॥ जरा विचार तो कर, के वांदरा मोटा मोटा भारी पर्वतीने केवीरीते उपाडी शके ? अने ते अगाध समुद्रमां नांखेला केवीरीते रही शके अने केवीरीते पुल बंधाई शके छे! ॥ १२ ॥ जो रावण देवताओथी पण अवध्य छे एवं वरदान पाम्यो छे तो मनुष्य कई रीते मारी शके छे॥१३॥ तथा जो देवताओएज वांदरा थईने राक्षसोना अधिपतीने मार्या एम कहो तोए कहे पण मनोवांछित गतिने प्राप्त थतुं नथी ॥ १४ ॥ शंकरे सर्वज्ञ थईने रावणने एवं वरदान केम आप्युं के जेनाथी देवताओने पण मोटो उपद्रव थयो ॥ १५ ॥ हे मित्र ? पाणीने वलोववाथी मांखण नीकळतुं नथी. तेज प्रमाणे अन्य मतनां पुराणोनो विचार करवाथी ते सर्वे प्रकारे सार रहित देखाय छे ॥ १६ ॥ हे मित्र ! ए लोकोना कह्या प्रमाणे सुप्रीवा - दिक वानर अने रावणादिक राक्षस नहोता ॥ १७ ॥ एसघळा विद्या विभवथ संपन्न जैनधर्ममा लवलीन पवित्र सदाचारी मोटा प्रतापी मनुष्योना राजा हता. एनी सेनामां वांदरानुं चित्र कहाडेली ध्वजा होवा थी ते वानरवंशी कहेवामां आवे छे। अने मोटी विद्याओना धारक रावणादिकनी ध्वजामां राक्षसोनी मूर्तिनुं चिन्ह होवाथी राक्षसवंशी कवाय छे ।। १८-१९ || माटे हे मित्र ! चन्द्रमा समान उज्वलद्रष्टिना धारक जे जीव छे तेओए जे प्रमाणे महावीर स्वामीना गौतम गणधरे श्रेणिक राजा आगळ वर्णन करेलं छे ते प्रमाणे श्रद्धान कर जोई || २ || हे भाई ! अन्यमतना पुराणोना बीजा पण गपाटा
SR No.022328
Book TitleDharmpariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarlal Karsandas Kapadia
PublisherMulchand Karsandas Kapadia
Publication Year1910
Total Pages244
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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