________________
१५०
जोयुं अथवा सांभळयुं छे ? ॥ १० ॥ सूर्य, धर्म, पवन अने इन्द्रना संगथी कुन्तीने कर्ण, युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, एटला पुत्र थया, एवो कयो बुद्धिमान विश्वास करी शकशे ॥ ११ ॥ जो देवोनी साथे मनुष्यनो संगम थाय छे, तो मनुष्योनो देवांगनाओनी साथ संगम थवो केम जोवामां आवतो नथी ? ॥ १२ ॥ सवळी अशुचिओनुं घर एवा महा मलिन मनुष्यना शरीरमा धातु अने मेल राहत देव केवी रीते रमे ? ॥ १३ ॥ हे मित्र ! अन्यमतनां शास्त्र छे ते सघळां अविचारिओनेज रमणीक देखाय छे, परंतु विवेकी पुरुष तेनो जेटलो विचार करे छे तेटलोज खंडित थई जाय छे || १४ || महाप्रभाववाळा देवता अने तपस्वीगण कन्याने भोगवीने स्त्री करे छे, ए वात विद्वान माणस कदापि मानता नथी, केमके ॥ १५ ॥ जे परस्त्रीलंपट थईने परस्त्रिओनुं सेवन करे छे एवा व्यभिचारीओने प्रभावशाली देव केवीरीते कही शकाय ? ॥ १६ ॥ हे मित्र ! असत्य कथा करवाथी शुं लाभ? हुं तने जैनमत प्रमाणे कर्णराजानी उत्पत्तिनी साची कथा कहुं हुं ते सांभळ ॥ १७ ॥
हस्तिनापुर नगरना व्यास नामना राजाने गुणोना घर एवा धृतराष्ट्र, पांडु अने विदुर नामना जगत् प्रसिद्ध त्रण पुत्र थया ॥ १८ ॥ एक दिवस कोई मनोहर बागमां क्रीडा करता पांडुए मंडपमां पडेली एक विद्याधरनी अंगुठी जोई ॥ १९ ॥ पाण्डु ते अंगुठीने आंगळीमां घालीने जोतो हतो, एटलामांज ते अंगुठीनो मालिक चित्रांगद नामनो विद्याधर पोतानी अंगुठीने शोधतो आवी पहोंच्यो ॥ २० ॥ ते निस्पृहि पांडुए तेज बखते ते अंगुठी ते विद्याधरने सोंपी दीधी. ते नीतिज छे के महापुरुष परद्रव्यमां निस्पृाहिज होय छे ॥ २१ ॥