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व हेते? ॥ ४४ ॥ त्यारे मनोवेगे कह्यु के हे विप्रो ! तमे ए प्रमाणे केम कहो छो ? तमारा पुराणोमां शुं एवां कार्य नथी ? ॥ ४५ ॥ त्यारे ब्राह्मणोए कह्यु के हे भाई ! र्ते हमारा वेद अथवा पुराणोमां एवं असंभव जोयुं होय तो बताव, ॥ ४६ ॥ त्यारे मनोवेगे कडं के हे ब्राह्मणो! हुं कहीश, परंतु तमे लोक वगरविचारजे मारा सघळां वचन ग्रहण करो, तो तमने कहेतां डरूं छु ॥ ४७ ॥ केमके- तमारा वेद अने पुराणोमां जग्या जग्याए ब्रह्महसा छे तो तमे सुभाषित कहेलाने केवी रीते ग्रहण करशो ? ॥ ४८ ॥ जे प्रमाणे तमारा शास्त्रमा कडं छे के-पुराण, मानवधर्म, ( मनुस्मृतिमां कहेलो धर्म ) अंग सहित वेद अने चिकित्सा ए चार आज्ञा सिद्ध छे, जेने हेतुथी खंडन नहि करवी जोईए ॥४९॥ तथा मनु व्यास वसिष्टनां वचन वेदानुकूलज छे. एनां वचनोने जे अप्रमाण करे छे,तेने मोटी भारीब्रह्महत्या लागे छे ।। ५०॥जे सदोष वचन होय छे,तेमां हेतु बताववानो निषेध करवामां आवे छे, केमके चोख्खा सोनानी परिक्षा कराववाने कोई पण डरतुं नथी ॥ ५१ ॥ त्यारे वेदावलम्बियोए कह्यु के-हे भद्र ! केवल मात्र वचन कहेवामांज पाप लागतुं नथी केमके- तीक्ष्ण धार ए प्रमाणे मात्र बोलवामांज जीभ कपाती नथी ॥ ५२ ॥ जो वचन मात्र बोलवाथीज पाप लागे छे तो उष्ण अग्नि कहेतां मुख केम नथी बळतुं ? ॥ ५३ ॥ ते माटे तमे निर्भय थईने पुराणोनो अर्थ कहो. हमे सघळा नैयायिक छीए, माटे न्याय पूर्वक कहेलां वचनने अवश्य ग्रहण करीशुं ॥ १४ ॥ ते पछी सर्व शास्त्रना जाणकार मनोवेग विद्याधरे कयु के- जो ए प्रमाणे छे तो हे विप्रो ! हुं मारा पोताना विचारने प्रगट करूं छु ॥ ५५॥