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________________ कमंडल राखीने तेनी नीचे बैठेला अगस्त्य मुनिने जाया ॥ २१ ॥ अगस्त्य मुनिए कयुं के हे विरंची ! तुं व्याकुलचित्त थई केम फरतो फरे छ ? ॥ २२ ॥ त्यारे ब्रह्मानीए कह्यं के हे साधु ! मारी सृष्टि कोई जग्याए पण नती रही, तेथी हुँ गांडो थईने तेने शोधतो फरुं छु ॥ २३ ॥ अगस्त्य मुनिए कह्यं के हे विधे ! तुं मारा कमंडलमा प्रवेश करीने जो, बीजे कई न जो ॥ २४ ॥ त्यारे ब्रह्माए कमंडलमा प्रवेश करीने जायें तो त्यां एक वडनुं झाड छे, तेना पांदडा उपर पेट फुलावेला श्रीपति ( विष्णु भगवान ) सूई रह्या छे ॥ २५ ॥ त्यारे ब्रह्माए विष्णु भगवानने कह्यु के हे कमलापति ! निश्चल थई पेट फुलावी केम सूई रह्या छो? ॥ २६ ॥ त्यारे विष्णुए कह्यु के-तारी सृष्टि एक समुद्रमां तणाई जती हती, तेथी तेने में मारा पेटमां राखी लीधी छे ॥ २७ ॥ माटे शाखाओथी व्याप्त मोटा वडना झाडना पांतरा उपर सूतेला विष्णुर्नु पेट एज कारणथी फूली गयलं जणाय छे, एवो विचार करीने ब्रह्माए कह्यु के-हे श्रीपते ! तमे बहु सारुं कर्यु, के प्रलयमां नष्ट थती पृथ्वीनी रक्षा करी. परंतु ॥ २८ ॥ २९ ॥ हे श्रीपति ! ते सृष्टिने जोवाने मारुं मन बहुज उत्कंठित थई रयुं छे.ते ठीकजछे, के बालबच्चानो वियोग सघळानेज असह्य होय छे ॥ ३० ॥ त्यारे विष्णुए कह्यु के तुं फोकैट केम दुःखी थाय छे ? मारा पेटमा प्रवेश करीने आनंद साये तारी सघळी सृष्टिने जोइ ले ॥ ३१ ॥ ते पछी ब्रह्मा विष्णु भगवानना पेटमां जई पोतानी सृष्टिने जोई बहुज हर्षित थया. ते उचितज छे केसंतानने जोईने कोनुं मन हर्षित नहि थाय? ॥ ३२ ॥ विष्णुना पेटमां बहु वखत सूधी पोतानी संघळी सृष्टिने जोईने ब्रह्माजी विष्णुना
SR No.022328
Book TitleDharmpariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarlal Karsandas Kapadia
PublisherMulchand Karsandas Kapadia
Publication Year1910
Total Pages244
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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