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बेसी गया, ते ठीकज छे के व्यभिचारी अने चोर छुपाईनेज रहे छे ॥९॥ जे अग्नि ते समये यमराजना भयथी वृक्ष अने पत्थरोमां छुपाया ते हमणां सुधी बुद्धिवानोना प्रयोग विना प्रगट थता नथी ॥ १० ॥ आ प्रमाणे कहीने मनोवेगे पूछयु के-हे विप्रो ! तमारा पुराणोमां आ कथा एज प्रमाणे छे के नहि ? ब्राह्मणोए कह्यु के खरेखर एवीज कथा छे! त्यारे मनोवेगे कयु के-हे ब्राह्मणो ! जे यमराज सघळाना शुभाशुभना जाणीता छे अने हमेशां शिष्टापर अनुग्रह अने दुष्टोपर दंड करवावाळा छे तेणे जो पोताना पेटमां स्थित प्रियाना पटेमां अग्निदेवने रहेता पण जाण्या नहि, तो तेनुं देवपणुं अथवा अग्निनु देवपणुं केम नहि चाल्युं गयुं ? ॥ ११-१२-१३ ॥ जे प्रमाणे आ नाना सरखा दोषथी तेनुं देवपणुं नहि गयु, तेज प्रमाणे ऊंदरोवडे मारा बिलाडाना कान कपाई जवाथी बीजा जे मोटा मोटा गुण छे, ते केवी रीते जई शके छ ? ॥ १४ ॥ आ सांभळीने ब्राह्मणोए प्रशंसापूर्वक का के-हे भद्र ! तमे बहुज सारं कडं. ते नीतिन छे के-जे समजदार सत्पुरुष होय छे, तेओ न्याय रहित पक्षनुं समर्थन कदापि करता नथी ॥ १५ ॥ हे भद्र ! हमे हमारा पुराणोनो जेम जेम विचार करीए छीए, तेम तेम तेना नर्णि वस्त्रोनी माफक सेंकडो भाग थाय छे, माटे शुं करीए, तेनुं हमे कोई प्रकारे पण समर्थन करी शकता नथी ॥ १६ ॥ आ प्रमाणे, ब्राह्मणानुं वचन सांभळीने मनोवेगे कह्यु के हे विप्रो ! संसाररुपी वृक्षने आग्निनी समान देव छे, तेनुं स्वरुप सांभळो ॥ १७ ॥ जेनुं चित्त, लावण्यरुपी जलनी लहेर, कामदेवने रहेवानी वस्ती, गुण अने सुंदरतानी खाण, कटाक्षरुपी बाणोवडे सघळा माणसोने घायल करवावाळी, त्रिलोकमां