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________________ ॥ ५९-६० ॥ बलिना बंधननी साची कथा हुँ कहुं छु, के जेने मृढ माणसोए कईचें कई प्रसिद्ध करी दीधुं छे.॥ ६१ ॥ एक समये बलि नामना एक दुष्ट ब्राह्मण मंत्रीए मुनिओने उपसर्ग कों हतो, तेथी ऋद्धिप्राप्त विष्णुकुमार नामना एक मुनिए वामननुं रुप धारण करीने त्रण पगलां जमीन मागीने बलिने वचनथी बांधी लीधो अने मुनिओनी रक्षा करी हती. आ प्रमाणे जे कथा छे तेने मूढ लोकोए जुदाज प्रकारे मानी छे ॥ ६२-६३ ॥ नित्य, निरंजन, सूक्ष्म, मृत्यु, जन्मी रहित तथा निष्कल होईने तेणे दश अवतार केवी रीते धारण कर्या ? ॥ ६४ ॥ हे मित्र! एज प्रमाणे पूर्वापर विरोधी भरला ए लोकोनां पुराण छे, ते तने फरीथी बताईं छु, एम कहीने ते मनोवेगे लाकडां वेचनार- रुप बदल्युं ॥ ६५ ॥ ए पछी पोतानी विद्याना प्रभावथी ते मनोवेगे वक्र छे केशोनो भार जेनो, काजळना. रुप समान, मोटा मोटा हाथ पगवाना भीलनुं रुप धारण कर्यु ।। ६६ ॥ एज प्रमाणे पवनवेगे पण मार्जारी विद्याथी पीली आंखोवाला कापेला कानवाला काळा बिलाडानुं रुप धारण कर्यु ॥ ६७ ॥ ए पछी ते मनोवेग नगरमां जइने बिलाडाने एक घडामा राखी बीजी वादशालामां पहोंच्यों, अने त्यां जइने बंट वगाडी ने सोनाना सिंहासनपर जई बेठो ॥ ६८ ॥ घंटनो अनाज सांभळीने वादी ब्राह्मणो तरत आवीने मनोवेगने कहेवा लाग्या के, अरे ओ! तुं वाद कर्या वगरज आ सोनाना सिंहासन उपर केम बेठो?॥६९॥त्यारे मनोवेगे कह्यु के हे ब्राह्मणो ! वाद ए नामनेज नथी जाणतो तो हुँ पशु समान वनमांफरवावाळो बाद केवीरीते करी शकुं? ॥ ७० ॥ त्यारे ब्राह्मणोए कह्यु के-हे
SR No.022328
Book TitleDharmpariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarlal Karsandas Kapadia
PublisherMulchand Karsandas Kapadia
Publication Year1910
Total Pages244
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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