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________________ प्रकरण १० मुं. ए पछी मनोवेगे कह्यु के हे ब्राह्मणो! रागथी आंधळो रक्तपुरुष द्वेष करतो द्विष्टपुरुष, विज्ञान रहित मूढपुरुष, व्युद्ग्राहि राजानो पुत्र, विपरितात्मा पित्तदृषित, परिक्षा कर्या वगर आंबाना झाडन कापवावाळो शेखर नामनो राजा, गायनो त्यागी तोमर बादशाह, अगुरु चंदन वृक्ष बाळवावाळो हालि, लीमडानी लाकडीथी चंदननो बदलो करवावाळो लोभी रजक अने विचार रहित चार मूर्ख ए दश प्रकारना मूर्यो कह्या. एना जेवा कोई मूर्ख तमे लोकोमा होय तो मने बतावी दो ॥ १-२-३ ॥ आ वचन सांभळीने सघळा ब्राह्मणोए कह्यु के हे भद्र ! हमे सघळा विचारवान छीए. जे प्रमाणे गरूड सपने मारे छे ते प्रमाणे हमे मूर्खने दंड करीए छीए ॥ ४ ॥ मनोवेगे फरीथी कह्यु के, हे विप्रगणो! मारा मनमा हजु पण थोडो भय छे, कमेके तमे लोकोमां घणाखरा पोताना वाक्यनो आग्रह करवावाळा हशे ॥ ५ ॥ बीजं जे वक्तानी पासे सुंदर मनोहर बेसवार्नु आसन न होय, माथा उपर मोटी पाघडी अथवा चोटली न होय, पुस्तक नवं न होय, योग्य सुंदर धोतीजोटो न होय ॥ ६ ॥ तथा जेना पगमां सुंदर पावडीनी जोड न होय, लोकने रंजायमान करे एवो वेष न होय, तो ते वक्तार्नु कहेवू कोई पण प्रमाणिक समजतुं नथी ॥ ७ ॥ केमके आजकाल घणा लोको कोई वेष धारण कर्या वगरनानो आदर
SR No.022328
Book TitleDharmpariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarlal Karsandas Kapadia
PublisherMulchand Karsandas Kapadia
Publication Year1910
Total Pages244
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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