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देववंदन नाष्य अर्थसहित. ए अनुक्रमें देखामतो प्रको प्रथम दश त्रिकोनुं हार कहेतो तो बे गाथायें करी दश त्रिकोना नाम कहे जे.
तिनि निसिही तिनिठ, पयाहिणा तिनि चेव य पणामा ॥ तिविहा पूया य तहा, अवन-तिय-नावणं चेव ॥ ६॥ ति दिसि-निरकण-विरई, पयनूमि-पमळणं च तिकुतो ॥ वन्नाइ-तियं मुद्दा, तियं च तिविहं च पणिहाणं ॥७॥
अर्थः-प्रथम देरासरे जातां (तिनिनिसिही के ) त्रणवार नैषिधिको कहेवी, बोजु देरासरे (तिनिन के ) त्रय वली (पयाहिणा के) प्र दक्षिणा देवी, त्रीजी (तिनि के) त्रण वार (चेवय के ) ए निर्धार वाचक शब्द डे (प णामा के) प्रणाम करीयें, चोथो (तिविहा के०) त्रण प्रकारनी अंगपूजादिक (पूया के) पूजा करवी, पांचमी (य के०) वली (तहा के) तथा प्रनुनी पिमस्थावस्थादिक [अवनति