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देववंदन नाष्य अर्थसहित. ते (माल के ) माल दोष, पांचमो गामानी क धिनी तेरे अंगुग तथा पानी मेलवी पग राखे ते (नही के ) नधि दोष, हो नेनलमा पग नाख्यानी परें पग मोकला राखे, ते (नियल के०) निगम दोष, सातमो नागी निजमीनी पेरें गुह्यस्थानके हाथ राखे ते (सबरि के) श बरि दोष, आठमो घोमाना चोकमानी पेरें हाथ रजोहरणे राखे, ते (खलिण के०) खलिण दोष, नवमुं नवपरिणीत वहूनी पेरें माधुं नीचुं राखे ते (वहू के०) वधूदोष, दशमो नालिनी नपरें अने ढींचणश्री नीचे जानु नपरें लांबुं वस्त्र राखे ते (लंबुत्तर के) लंबुत्तर दोष, ए दोष यति आश्रयी जाणवो. केमके इंटीथी चार अंगुल नी चें अने ढींचणथी चार अंगुल नपर यतिने चोल पट पहेरवो कह्यो . अगीयारमुं मांस मसाना नये अथवा अज्ञानथी लङाथी स्त्रीनी पेरें हैयुं ढांकी राखे, हृदय आजादे, ते (श्रम के) स्त नदोष, बारमो शीतादिकने नये साधवीनी रें बेहु खंना ढांकी राखे एटले समग्र शरीर आबादी