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देववंदन नाष्य अर्थसहित. आवे, बहुं नमकार ते ऊर्ध्ववात आवे, सातमुं अधोवात आवे, आठमुं नमरि आवे, नवमुंव मन पित्त मूळ आवे, दशभु सूक्ष्म अंगस्फुरक पथी, अगीयारमुं खेलसिंघाण नामक मेल सं चारथी, बारमुं दृष्टि प्रमुख संचारथी कानस्स ग्ग न नांगे.
तथा (एवमाश्या चनरो के) एवमादिक चार आगार कहे एक (अगणि के०) अमिनो नपश्व नपने थके तिहाथी पूंजतो अलगो जाय अथवा दीवा प्रमुखनी नजेई यातां तथा अग्निनो स्पर्श श्रतो होय तेवारे कानस्सग्गमांहे कपमाश्री शरीर ढांके,अथवा पूंजतोअलगोज रहे, बीजूं (पणिं दिबिंदण के ) पंचेंशियलिंदन पंचेंडियन बेदन यतुं होय अथवा मूषकादिक पंचेंद्रिय जीव, ते स्थापनाचार्य अने पोतानी वचमां जाता होय, तेवारें पूंजतो अलगो जइ रहे, तो कानस्सग्ग नंग न थाय. त्रीजुं (बोहोखोना के ) बोधि होनादि ते जिहां राजा अथवा चोरादिक मनु ध्य तेना परानवें करी धर्मनी कोनणा पाय माटें