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५४ देववंदन नाष्य अर्थसहित. ताना स्वरूपनुं हेतु प्रकटार्थ देखावा रूप सातमी (सरूवदेन के) स्वरूप देतु संपदा जाणवी, तथा पोताने समान फलदायक प्रकटार्थ रूप एटले स्त वना करनारने आपतुल्य करे एवी परम फलदा यिनी एटले पोतानी समान परने फलनु करण ए टला माटे आठमी (नियसमफलय के०) निज समफलदनामे संपदा जाणवी, तथा मोद स्वरूप प्रकटार्थ रूप मोक्षपदनुं स्वरूप, एटला माटे नव मी (मुरके के) मोक संपदा जाणवी. जे माटे का ने के “ सवन्नाइं पढमो, बी, सिवमयल मा अालावो ॥ तश्न नभोजिणाणं जिय नयाएंग तनिदिठो ॥१॥ इत्यावश्यके ॥३५॥ हचे नमोबुणंना अकरादिकनी एकंदर सरवाले
____संख्या कहे . दो सगनऊआ वमा, नवसं पय तित्ती स सक्कथए ॥ चश्यथय संपय, तिचत्त पय वम उसयगुणतीसा ॥३६॥
अर्थः-(सक्कथए के) शकस्तव जे नमुचुणं