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४ देववंदन नाष्य अर्थसहित. सपया के) वीश पद, एम (मंगल के ) नव कार, (इरिया के) इरियावहि अने ( सक्कडया इसु के) शकस्तवादिक पांचे दंझक ए सात सूत्रांने विषे सर्व मली (गसीइसयं के०) ए कशो ने एझ्याशी पदनी संख्या जाणवी. अने प्रलिपातनां पद तो बांदणां नेलां गुरु वंदनमां कदेशे, तथा प्रणिधानत्रिकनी पद संपदा अनुक्र में बे, तेमाट न कह्यं “वारिज" इत्यादि गाथा नक्तिनी योजना , ते इहां गणी नही ॥२०॥
हवे संपदानी संख्या कहे . अनवध्य अहवी, स सोलसय वीस वीसामा ॥ कमसो मंगल इरिया, सक्क थयाईसु सगननई ॥ ए॥ __ अर्थः-प्रथम नवकारनी (अठ के) आठ संपदा, तथा इरियावहिनी (अ के) आठ सं पदा, तथा नमोबुसंनी (नव के०) नव संपदा, तथा अरिहंत चेश्याणंनी (अ के) आठ सं पदा, (य के०) वली खोगस्सनी (अध्वीस