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४ देववंदन नाष्य अर्थसहित. पाइं॥ चनवीस वारेहिं, उसहस्सा हुति चन सयरा ॥॥ इतिदारगाहा ॥
अर्थः-प्रथम देव वांदतां नैषेधिक आदिक (द हतिग के७) दश त्रिक साचववा जोश्ये, तेनुंहार कदीश, बीजुं (अहिगमपणगं के) अन्निगमपं चक एटले पांच अनिगमर्नु हार कहीश. त्रीनुं देव वंदन करता स्त्रीने कयी दिशायें अने पुरुषने कयी दिशायें मना रहेQ जोश्ये, ते (उदिसि के) विदिशि एटले बे दिशाननु चार कहीश, चोधुं जघन्य, मध्यम अने नत्कृष्ट एवा (निन ग्गह के० ) ऋण प्रकारना अवग्रहनुं हार कहोश, पांचU (तिहानवंदणया के ) त्रिधातुवंदनया एटले त्रण प्रकारे वली चैत्यवंदना करवी. तेनं धार कहीश,हुं पंचांग एटले पांच अंगें पणिवाय के०) प्रणिपात करवो, तेनुं हार कहीश, सातमुं (नमुक्कारा के०) नमस्कार करवानुं हार कहीश, आठमुं देववंदनना अधिकारें जे नवकार प्रमुख नव सूत्रां श्रावे , तेना (वरमा के० ) वर्ण एटले मदर ते (सोलसयसीयाला के) सोलहों ने