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३० देववंदन नाष्य अर्थसहित.
अर्थः-जिहां प्रकर्षे करी नक्ति बहुमानपूर्वक नमवू तेने (पणिवान के) प्रणिपात कहीये. ते (पंचंगो के) पांच अंग नूमियें लगामवा रूप जाणवो, लेनां नाम कहे (दोजाणू के) बे जानें, एटले बे ढींचण, अने (करग के) बे हाथ, (च के) वली पांचम (नत्तमंग के०) उत्तमांग ते मस्तक, ए पांच अंग जिहां खमास मग आपता नमिये लागे, ते पंचांग प्रणिपात कहीये. एणे करी “ चामि खमासमणो वं दिलं जावणियाए निसीहियाए मबएण वंदामि" ए पाठ कहे.ए डु प्रणिपात द्वार का. उत्तरबोल चुम्मालीश थया ॥
हवे सातमु नमस्कार द्वार कहे .(सु के) नला एवा (महब के) अत्यंत महोटा गहन अर्थ डे जेहना एटले नक्ति, ज्ञान, वैराग्य दशाना दीप क एवा (नमुक्कारा के) नमस्कार कहेवा ते (इंग के) एक तथा (उग के ) बे, तथा ( तिग के) त्रलथी मामीने (जावअध्सयं के) या वत् एकशो ने आठ पर्यंत कहे ॥ ए सातमुं न