________________
श्री रत्नाकरपंचविंशिका. ३२३ गलीला) सारा सारा नोगनी लीला (व्यचिंति) चिंतवी. (च) पण (रोगकीला) रोग रूपी खीलो (न) चिंतव्यो नहीं. (धनागमः) धननी प्राप्ति चिंतवी. (च) पण (निधनागमः) मर पनी प्राप्ति (नो) चिंतवी नहीं. (दारा) स्त्री चिंतवी, पण (नरकस्य) नरकनुं (कारा) का रागृह (न) चिंतव्युं नहीं ॥ ३०॥ ___ स्थितं न साधोर्हदि साधुटत्तात्, परो पकारान्न यशोऽर्जितं च । कृतं न तोंड रणादिकृत्यं, मया मुधा हारितमेव जन्म।
अर्थः-(मया) में (साधुवृत्तात) सारा श्रा चरणथी (साधोः) साधु पुरुषना (हृदि) हृद यमां (न स्थितं) रहेवायुं नथी. वली (परोप कारात्) परोपकार करवाथी (यशः) यश (न अर्जितं) नपार्जन कर्यो नथी. (च) वली (ती धोरणादिकृत्यं ) तीर्थनो नहार विगेरे कार्य (न कृतं) कर्यु नश्री. तेथी (जन्म) जन्म (मुधा) फोगट (हारित) गमाव्यो बे (एव) निश्चे ॥१॥
वैराग्यरंगो न गुरूदितेषु, न उर्जनानां