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३५ देववंदन नाष्य अर्थसहित. एटले अंजलिबइ प्रणाम करवो, ते पांचमो अ निगम जाणवो ॥ २० ॥
श्य पंचविहाजिगमो, अहवा मुच्चंति रायचिदाई ॥ खग्गं उतोवाणह, मनमं च मरे अ पंचमए ॥ २१॥ दारं ॥२॥
अर्थः-(इय के०) पर्वली गाथामांकह्या जे (पंचविहानिगमो के० ) पांच प्रकारे अनिगम ने देव तथा गुरु पासे आवतां साचववा (अह वा के ) अथवा वंदना करनार श्रावक जो पोतें राजादिक होय तो ते ए पांच अनिगम सावे, अने वली बीजां (रायचिह्नांई के० ) राजानां पांच चिह्न २ ते प्रत्ये (मुचंति के०) मूके एटले गंमे तेनां नाम कहे ,एक (खग्गं के०) खड्ग, बीजुं (उत्त के) उत्र, त्रीजु ( नवाणह के०) उपानह, एटले पगनी मोजमो, चोथो माथार्नु (मनऊ के ) मुकुट अने (पंचमए के ) पां चमुं ( चमरेप के ) चामर, ए पण पांच अ निगम जाणवा ॥१॥ एटले पांच अन्तिमम