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पञ्चरका नाष्य अर्थसहित.
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ऊ) जावो. ॥ ३ ॥
चवलं न चंक मिऊ विरइकाइ नेव नमो वेसो ॥ वंकं न पलोइइ रुठा वि जांति किं पिसुणा ॥ ४ ॥
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अर्थः - ( चवलं ) चपलताए (न चंक मिइ ) न चालीये. (प्रमो ) ननट (वेसो) वेष (नेव ) नहिज ( विरइकर ) धारण करीये. (कं) वांकी दृष्टिए ( न पलोइकर ) न जोई ये. तो ( रुवि ) क्रोध पामेला एवा पण ( पि सुला ) चामोयान (किं ) शुं ( जयंति ) कहे कही शके ? ॥ ४ ॥
नियमिऊइ नियजीहा पवित्र्यारित्र्यं नेव किए कऊं । न कुलकमो प्र लुप्पइ कुविन किं कुणइ कलिकालो ॥ ५ ॥
अर्थ :- ( नियजीदा ) आपली पोतानी जी ह्वाने ( नियमितइ ) नियममां राखीये ( श्रवि श्ररिश्र ) अविचार्य ( क ) कार्य (नेव ) नहीं 'ज ( किए ) करीए (अ) वली ( कुलकमो)